बिहार में खौफ का पर्याय रहा पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन कोरोनावायरस (Coronavirus) के संक्रमण से नहीं बच पाया। इलाज के दौरान दिल्ली के अस्पताल में शहाबुद्दीन का निधन हो गया। बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का 53 साल का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। या कह सकते हैं कि इस तरह के नेताओं और बाहुबलियों से ही फिल्मों की कहानियां भी जन्म लेती हैं।
सिवान जिले से सांसद रहे शहाबुद्दीन के बारे में कहा जाता है कि एक वक्त वह था जब उसके लिए इंसानों की जान की कीमत कुछ भी नहीं थी। आम आदमी तो छोड़ दीजिए पुलिसवाले तक उससे खौफ खाते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 2004 की वह घटना, जिसमें दो लोगों को तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था। 3 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप भी उसके गुर्गों पर लगा था।
2 युवकों को तेजाब से नहलाकर मारा : दरअसल, 2004 में व्यापारी चंदा बाबू के तीन बेटों- गिरीश, सतीश और राजीव का बदमाशों ने रंगदारी के लिए अपहरण कर लिया था। इनमें से दो को मार दिया गया था, जबकि राजीव किसी तरह बचकर वहां से भाग निकला था। बाद में वही हत्याकांड का मुख्य गवाह भी बना। मगर 2015 में राजीव की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। शहाबुद्दीन के खिलाफ पहली बार 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज में एफआईआर दर्ज हुई थी।
पत्रकार की हत्या : वर्ष 2016 में पत्रकार राजीव रंजन की हत्या में भी शहाबुद्दीन का नाम आया। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या का आरोप भी शहाबुद्दीन पर लगा। 2005 में सांसद रहते हुए शहाबुद्दीन को तड़ीपार किया गया था। मौत से पहले शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था। 2005 में घर पर रेड में इस बाहबुली नेता के यहां से हथियार भी बरामद हुए थे। इनमें से कुछ पाकिस्तानी हथियार भी थे।
राजनीतिक करियर : शहाबुद्दीन जीरादेई विधानसभा से दो बार विधायक (1990-1995) बना। 1996 से 2009 तक सीवान से सांसद रहा। 2009 में ही उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई।