नई दिल्ली/ तपोवन। उत्तराखंड के चमोली जिले में तपोवन सुरंग में चल रहे बचाव अभियान में बृहस्पतिवार को ऋषिगंगा नदी में जलस्तर बढ़ जाने से बाधा आ गई और सुरंग में कार्यरत मशीनों एवं लोगों को बाहर निकालना पड़ा। इस बाढ़ के कारण 34 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 170 अन्य लोग लापता हैं।
चमोली जिले की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने बताया कि रविवार को ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़ से क्षतिग्रस्त तपोवन-विष्णुगॉड परियोजना की सुरंग में फंसे 25-35 लोगों को बचाने के लिए पिछले चार दिन से चलाए जा रहे अभियान को फिलहाल रोकना पड़ा और वहां मलबा और गाद रोकने में जुटे बचावकर्मियों को बाहर निकाल लिया गया।
बचाव अभियान में कई एजेंसियां लगी हैं और पिछले 4 दिन से उनके अभियान का केंद्र यह सुरंग है और हर गुजरता क्षण इसके भीतर फंसे लोगों की सुरक्षा संबंधी चिंता को बढ़ा रहा है। इससे पूर्व बचाव कार्य में लगी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के प्रवक्ता विवेक कुमार पांडे ने बताया बचाव दलों ने कीचड़ से भरी सुरंग में जाने के लिए देर रात 2 बजे से खुदाई अभियान शुरू किया।
उन्होंने कहा कि सुरंग में फंसे लोगों को बचाने में लगातार आ रहा कीचड़ सबसे बड़ा अवरोधक बन रहा है। ऐसे में यह पता लगाने के लिए एक बड़ी मशीन से खुदाई की जा रही है कि क्या इस समस्या को किसी और तरीके से सुलझाया जा सकता है तथा क्या बचावकर्मी और गहराई में जा सकते हैं?
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) परियोजना स्थल पर बचाव कार्य की निगरानी कर रहे गढ़वाल आयुक्त रविनाथ रमन ने बताया कि सुरंग के भीतर करीब 68 मीटर से मलबे की खुदाई शुरू की गई है। इस समय नई रणनीति उस स्थान तक जीवनरक्षक प्रणाली मुहैया कराने पर केंद्रित है, जहां लोग फंसे हो सकते हैं और खुदाई करके उन तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है। सुरंग में कई टन गाद होने के कारण फंसे लोगों तक पहुंचने में काफी समय लग सकता है, इसलिए इस समय ऑक्सीजन सिलेंडर इत्यादि जैसे जीवनरक्षक उपकरणों को खुदाई करके फंसे लोगों तक पहुंचाना है।
सुरंग के मुंह से बुधवार तक करीब 120 मीटर मलबा साफ किया जा चुका था और ऐसा बताया जा रहा है कि लोग 180 मीटर की गहराई पर कहीं फंसे है, जहां से सुरंग मुड़ती है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के प्रमुख एसएस देसवाल ने बुधवार को कहा था कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को ढूंढने का अभियान तब तक चलेगा, जब तक कि यह किसी तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच जाता। उन्होंने कहा कि बचावकर्मी फंसे लोगों का पता लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उल्लेखनीय है ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ से 13.2 मेगावॉट ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी और बुरी तरह क्षतिग्रस्त 520 मेगावॉट तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में काम कर रहे लोग उसमें फंस गए थे। उसके बाद से ही सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) और राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ)लगातार बचाव और तलाश अभियान चला रहे हैं।
चमोली में एक और शव मिला, मृतकों की संख्या 35 हुई : देहरादून से मिले समाचारों के अनुसार उत्तराखंड के चमोली जिले में गुरुवार को एक और शव मिलने से आपदा में मरने वालों की संख्या 35 हो गई जबकि 169 अन्य लोग अभी लापता हैं। चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने बताया कि जिले के गौचर क्षेत्र से एक और शव बरामद हुआ है जिसके साथ ही अब तक आपदाग्रस्त क्षेत्र के अलग-अलग स्थानों से 35 शव बरामद हो चुके हैं। इसके अलावा 169 अन्य लोग अभी भी लापता हैं जिनमें तपोवन सुरंग में फंसे 25-35 लोग भी शामिल हैं।
जिलाधिकारी ने बताया कि प्रशासन ने रविवार 7 फरवरी को बरामद शवों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आपदाग्रस्त क्षेत्र में बचाव और राहत अभियान जोरों से चलाया जा रहा है और कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। सुरंग में कम जगह होने के कारण खुदाई के काम में एक बार में केवल 2 एक्सकेवटर ही लगाए जा सकते हैं, जो लगातार काम में जुटे हैं। ऋषिगंगा घाटी में रविवार को लाखों मीट्रिक टन बर्फ के एकसाथ फिसलकर नीचे आने से बाढ आ गई थी जिससे ऋषिगंगा और तपोवन-विष्णुगाड परियोजनाएं बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं और उनमें काम कर रहे लोग लापता हो गए। (भाषा)
अपनाई जा रही बहुआयामी रणनीति : उत्तराखंड के चमोली जिले में तपोवन सुरंग में फंसे 25 से 35 लोगों को ढूंढने में गाद के कारण बचाव अभियान में आ रही दिक्कतों के बाद बचाव दलों ने गुरुवार को बहुआयामी रणनीति अपनाई है। सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) और राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसडीआरएफ) द्वारा लगातार चलाए जा रहे बचाव और तलाश अभियान में 5वें दिन गुरुवार को सुरंग में फंसे लोगों को ढूंढने के लिए रिमोट सेंसिंग से लेकर ड्रिलिंग तक हर तकनीक अपनाई जा रही है।
बचाव अभियान में लगे अधिकारियों ने बताया कि जिस सुरंग में लोगों के फंसे होने का अनुमान लगाया जा रहा है, वह दरअसल कई सुरंगों का एक जाल है जिसमें कई सुरंगें या तो 90 डिग्री पर नीचे मुड़ती हैं या फिर कोण बनाकर दाएं और बाएं चली जाती हैं। एसडीआरएफ की उपमहानिरीक्षक रिद्धिम अग्रवाल ने बताया कि सुरंग की जियो मैपिंग कराई गई थी जिससे हमें पता चल सके कि हमें क्या रणनीति अपनानी चाहिए? इसी क्रम में जियो मैपिंग के बाद ड्रिलिंग करने का फैसला लिया।
अग्रवाल ने बताया कि चूंकि हमारे पास समय कम है इसलिए हर उस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा जिससे सफलता मिलने की उम्मीद हो। हेलीकॉप्टर के जरिए रिमोट सेंसिंग से अंदर के फोटो लिए गए जबकि ड्रोन से भी अंदर का जायजा लेने का प्रयास किया गया। हांलांकि ड्रोन से कोई खास जानकारी नहीं मिल पाई। उत्तराखंड पुलिस के प्रवक्ता नीलेश आनंद भरणे ने बताया कि ड्रिलिंग शुरू करने के अलावा पहले से की जा रही खुदाई और गाद निकालने का काम भी जारी है।
पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि फंसे लोगों को बचाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किए जा रहे हैं। ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी लाखों मीट्रिक टन बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ से 13.2 मेगावॉट ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी जबकि बुरी तरह क्षतिग्रस्त 520 मेगावॉट तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में काम कर रहे लोग उसमें फंस गए। (भाषा)