भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में आग लगने के बाद मासूमों की मौत ने एक बार फिर स्थानीय प्रशासन के साथ ही सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, जिन बच्चों की किलकारियों को सुनने के लिए परिजन उनके जन्म के बाद से उम्मीद लगाए बैठे थे, वे अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के चलते असमय ही काल के गाल में समा गए।
इन बच्चों की मौत ने न सिर्फ उनके माता-पिता बल्कि उन लोगों को भी हिलाकर रख दिया, जो इस आशा के साथ बच्चों को अस्पताल लेकर जाते हैं कि उन्हें नया जीवन मिलेगा।
मृत बच्चों के परिजनों को भी उम्मीद थी कि वे अपने हंसते-खेलते बच्चों को लेकर घर जाएंगे, लेकिन जब उन्हें बच्चों के शव सौंपे गए तो उनका दिल ही बैठ गया। अस्पताल में आग लगने के बाद वार्ड में भर्ती बच्चों के परिजन अपने जिगर के टुकड़ों की तलाश में इधर-उधर बदहवास भागते नजर आए।
कुछ परिजनों का तो यह भी कहना था कि बच्चों को बचाने के बजाय अस्पताल के कर्मचारी घटना के समय वहां से भाग गए। खुद मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने वार्ड के अंदर की स्थिति को बेहद डरावनी बताया। वहां चारों ओर अंधेरा और धुआं ही धुआं था।
दरअसल, जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो शासन-प्रशासन नींद से जाग जाता है, लेकिन उसके कुछ समय बाद चीजें वैसी की वैसी हो जाती हैं। पीड़ा सिर्फ उन घरों और दिलों में रह जाती है, जिन्होंने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया है। ऐसा भी नहीं कह सकते हैं कि इस तरह की घटनाओं से सबक लिया जाता है। यदि सीख ही ली जाती तो इस तरह की घटनाओं का दोहराव ही नहीं होता।
जून 2017 में मध्यप्रदेश के ही सबसे बड़े अस्पताल महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय (MY Hospital) में भी लापरवाही की बड़ी घटना सामने आई थी, जब कथित तौर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होने से करीब डेढ़ दर्जन मरीजों की मौत हो गई थी। इसी एमवाय अस्पताल में 2017 और 2015 में आग की घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन सौभाग्य से उस समय कोई जनहानि नहीं हुई। इसलिए यह कहना कि जिम्मेदार इस तरह की घटनाओं से सबक लेते हैं, हमारे भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है।
एक खास बात और है कि फायर एंड इमरजेंसी सर्विस एक्ट भी मध्यप्रदेश में लागू नहीं किया गया है। यह एक्ट बिल्डिंगों में अग्नि सुरक्षा के नियमों का पालन सुनिश्चित करता है। लैंड डेवलेपमेंट एक्ट और टीसीपी द्वारा जिन बिल्डिंगों की परमीशन दी जाती है उनमें केवल हाईराइज बिल्डिंगों में ही फायर सेफ्टी का उल्लेख है। इसी साल मार्च में जबलपुर हाईकोर्ट ने भी सरकार से पूछा था कि राज्य में फायर एंड इमरजेंसी सर्विस एक्ट लागू क्यों नहीं किया गया।
यह भी कहा जा रहा है कि बेसमेंट और ग्राउंड फ्लोर मिलाकर 8 मंजिला कमला नेहरू अस्पताल में आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। अस्पताल में लगा ऑटोमेटिक हाईड्रेंट को खराब पड़ा था। फायर एक्सटिंग्विशर लगे तो थे, लेकिन काम नहीं कर रहे थे। अग्नि शमन विभाग के मुताबिक कमला नेहरू अस्पताल ने 15 साल से फायर NOC नहीं ली थी।
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल की घटना की जांच के निर्देश भी दिए हैं और जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई की बात भी कही है। कार्रवाई की भी गई है। अस्पताल में आग लगने के मामले में सरकार ने 3 अधिकारियों को हटा दिया गया है, जबकि एक उपयंत्री निलंबित भी कर दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आगे की जांच भी होगी, धीरे-धीरे मामला भी ठंडा पड़ जाएगा और लोग भी भूल जाएंगे। ...और 'व्यवस्था' एक बार फिर लंबी तानकर सो जाएगी। जागिए 'सरकार' ताकि इस तरह की घटनाओं का दोहराव न हो...