नई दिल्ली। क्या किसी जनप्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनीं। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हम जनप्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता कैसे बना सकते हैं? हम विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण करेंगे।
अटॉर्नी जनरल मेहता ने पीठ के समक्ष दलील दी कि मौलिक अधिकार के लिए प्रतिबंधों में कोई भी अतिरिक्त जुड़ाव या संशोधन संवैधानिक सिद्धांत के तहत संसद से आना है। उन्होंने कहा कि यह एक अकादमिक सवाल से अधिक अहम है कि क्या किसी विशेष बयान के खिलाफ कार्रवाई के लिए अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए रिट याचिका दायर की जा सकती है।
3 न्यायाधीशों की पीठ ने 5 अक्टूबर 2017 को विभिन्न मुद्दों पर फैसला सुनाने के लिए मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया। इन मुद्दों में यह भी शामिल है कि क्या कोई जनप्रतिनिधि या मंत्री संवेदनशील मामलों पर विचार व्यक्त करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा कर सकता है।
इस मुद्दे पर आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता उत्पन्न हुई क्योंकि तर्क थे कि एक मंत्री व्यक्तिगत राय नहीं ले सकता और उसका बयान सरकारी नीति के मुताबिक होना चाहिए।
Edited by : Nrapendra Gupta (भाषा)