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मुकुल रोहतगी ने कहा- समलैंगिक विवाह को मिलनी चाहिए मान्यता

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, बुधवार, 19 अप्रैल 2023 (21:48 IST)
  • 5 सदस्यीय पीठ कर रही है समलैंगिक विवाह पर सुनवाई
  • केन्द्र की तरफ से तुषार मेहता की नई याचिका
  • सुप्रीम कोर्ट का समयबद्ध तरीके से सुनवाई पर जोर
Supreme Court hearing on same-sex marriage: समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले को समयबद्ध तरीके से खत्म करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि अन्य मामले भी हैं, जिन्हें सुनवाई का इंतजार है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलनी चाहिए। 
 
प्रधान न्यायाधीश डीवाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने उस वक्त यह टिप्प्णी की, जब याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि वह संभवत: बृहस्पतिवार को भोजनावकाश तक का समय लेंगे। संविधान पीठ लगातार दूसरे दिन इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
 
दोपहर करीब 12 बजकर 45 मिनट पर अपनी दलीलें शुरू करने वाले सिंघवी ने पीठ से कहा कि वह दिन में थोड़ी देर से बहस शुरू कर रहे हैं और बृहस्पतिवार को दोपहर के भोजन से कुछ समय पहले या भोजनावकाश तक अपनी दलीलें समाप्त कर पाएंगे। इस पर न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि आपकी क्षमता इसे बिंदुवार रूप में रखने की है। मुझे लगता है कि आपको इसे बहुत पहले खत्म कर देना चाहिए।
 
विधवा विवाह का उल्लेख : एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए। रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र किया और कहा कि समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन ‘कानून ने तत्परता से काम किया’ और अंतत: इसे सामाजिक स्वीकृति मिली।
 
उन्होंने पीठ से कहा कि यहां, इस अदालत को समाज को समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। इस अदालत के पास, संविधान के अनुच्छेद-142 (जो उच्चतम न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है) के तहत प्रदत्त अधिकारों के अलावा, नैतिक अधिकार भी है और इसे जनता का भरोसा भी हासिल है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर हैं कि हमें हमारा हक मिले।
 
केन्द्र की तरफ से नई याचिका : मामले में दूसरे दिन की सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक नई याचिका दाखिल कर शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए।
 
उच्चतम न्यायालय में दायर एक नए हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इन याचिकाओं में उठाए गए ‘मौलिक मुद्दों’ पर उनकी टिप्पणियां और राय आमंत्रित की है।
 
रोहतगी ने किया विरोध : सरकार की ओर से दायर नई याचिका का विरोध करते हुए रोहतगी ने कहा कि याचिकाओं में केंद्रीय कानून, विशेष विवाह अधिनियम को चुनौती दी गई है और सिर्फ इसलिए कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आपको इस स्तर पर मेहनत करने की जरूरत नहीं है।
 
दलीलों पर लौटते हुए रोहतगी ने आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने सहित अन्य फैसलों का जिक्र किया और कहा कि अदालत किसी ऐसे विषय पर फिर से विचार कर रही है, जिसमें पहले ही फैसला किया जा चुका है।
 
रोहतगी ने कहा कि मेरा विषम लैंगिक समूहों के मामले में समान रुख है और ऐसा नहीं हो सकता कि उनका यौन अभिमुखीकरण (ओरियेंटेशन) सही हो और बाकी सभी का गलत। मैं कह रहा हूं कि एक सकारात्मक पुष्टि होनी चाहिए... हमें कमतर मनुष्य नहीं माना जाना चाहिए और इससे हमें जीवन के अधिकार का भरपूर आनंद मिल सकेगा।
 
अदालत ने कहा था : शीर्ष अदालत ने मंगलवार को स्पष्ट किया था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा। अदालत ने कहा था कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है। याचिकाओं पर सुनवाई और फैसले का देश पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा, क्योंकि आम लोग और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।
 
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। इन याचिकाओं में दोनों जोड़ों ने शादी के अपने अधिकार को लागू करने और संबंधित अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश देने की अपील की थी।
 
कौन हैं एलजीबीटीक्यूआईए : एलजीबीटीक्यूआईए का मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल से है। (भाषा/वेबदुनिया)

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