नई दिल्ली। गुजरात में 2002 के दंगों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (SIT) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जकिया जाफरी द्वारा दायर याचिका के अलावा अन्य किसी ने भी उसकी जांच पर उंगली नहीं उठाई है। जकिया ने इस याचिका में राज्य में हिंसा के दौरान एक बड़ी साजिश का आरोप लगाते हुए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित 64 व्यक्तिों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती दी है।
गुजरात दंगों के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में हिंसा के दौरान जकिया जाफरी के पति कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी मारे गए थे।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 5 अक्टूबर, 2017 के आदेश के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई पूरी की। इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा। हाईकोर्ट ने SIT के निर्णय के खिलाफ जकिया की याचिका खारिज कर दी थी।
विशेष जांच दल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा कि शीर्ष अदालत को जकिया जाफरी की याचिका पर निचली अदालत और उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि करनी चाहिए अन्यथा यह एक अंतहीन कवायद है जो सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड की कुछ मंशाओं के कारण चलती ही रहेगी। इस मामले में जकिया के साथ ही तीस्ता सीतलवाड दूसरे नंबर की याचिकाकर्ता हैं।
रोहतगी ने पीठ से कहा कि मैं समझता हूं कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने जो किया है, आपको इसकी पुष्टि करनी चाहिए अन्यथा यह एक अंतहीन कवायद है जो सिर्फ याचिकाकर्ता नंबर दो (सीतलवाड) की कुछ मंशाओं के कारण हमेशा ही चलती रहेगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सीतलवाड की संस्थाओं के कार्यो का हवाला दिया और कहा कि हमें गुजरात विरोधी, गुजरात को बदनाम करने वाले के रूप में पेश करना अनुचित होगा।
सिब्बल ने कहा कि इतिहास में बहुत ही कम अवसरों पर इस तरह के मामले आपके सामने आए हैं। ऐसा पहले भी कुछ अवसरों पर हुआ है। इसी तरह का यह एक और अवसर है जब कानून के शासन की परख हो रही है। और यहां, मेरी दिलचस्पी किसी को निशाना बनाने की नही है लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि आपराधिक कानून के तहत आप अपराधी का नहीं बल्कि अपराधों का संज्ञान लेते हैं।
जकिया जाफरी के अधिवक्ता ने इससे पहले दलील दी थी कि 2006 में ही उसने शिकायत की थी कि यह एक बड़ी साजिश है जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता, पुलिस की मिली भगत , नफरत पैदा करने वाले भाषण और हिंसा की छूट थी।
गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे मे 27, फरवरी, 2002 को हुए अग्निकांड में 59 व्यक्तियों के मारे जाने की घटना के बाद गुजरात में हिंसा भड़क गई थी। इसी हिंसा के दौरान कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 68 व्यक्ति अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में हुई हिंसा में मारे गए थे।
इन दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने आठ फरवरी 2012 को नरेन्द्र मोदी, अब प्रधानमंत्री, और 63 अन्य व्यक्तियों को क्लीन चिट देते हुए इस मामले को बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की थी। एसआईटी ने कहा था कि इन लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने लायक कोई साक्ष्य नहीं है।
जकिया जाफरी ने गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर, 2017 के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि एसआईटी की जांच की निगरानी उच्चतम न्यायालय ने की थी।
याचिका में यह भी कहा गया है कि मामले में एसआईटी ने निचली अदालत में पेश अपनी मामला बंद करने की रिपोर्ट में क्लीन चिट दी जिस पर उन्होंने विरोध याचिका दायर की लेकिन मजिस्ट्रेट ने पुख्ता मेरिट पर विचार किए बगैर ही उसे खारिज कर दिया था।