Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हरिद्वार कुंभ में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क से दूरी कहीं पड़ न जाए भारी

हमें फॉलो करें हरिद्वार कुंभ में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क से दूरी कहीं पड़ न जाए भारी
, बुधवार, 14 अप्रैल 2021 (12:57 IST)
पिछले साल भी लगभग यही वक्त था और कोरोना अपने शुरुआती दौर में ही था। उस समय देश में सबसे ज्यादा तबलीगी जमात के लोगों की चर्चा हो रही थी कि इन्होंने पूरे देश में कोरोनावायरस (Coronavirus) फैलाने का काम किया है। इस दौरान वर्ग विशेष के लोग भी निशाने पर आ गए थे। एक बार फिर हम उसी स्थिति में पहुंच गए हैं।
 
इस बार मामला उलट है, अब दूसरा वर्ग निशाने पर है। कारण है हरिद्वार महाकुंभ। क्योंकि हरिद्वार में इस समय देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचे हैं और सब एक साथ मिलकर 'पवित्र डुबकी' भी लगा रहे हैं। इस समय कोरोना के आंकड़े भी डराने वाले हैं। 13 अप्रैल का ही आंकड़ा 1 लाख 84 हजार से ज्यादा है और महाकुंभ के जो फोटो और वीडियो सामने आ रहे हैं उनमें स्पष्ट देखा जा सकता है कि न तो वहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है न ही लोग मास्क लगा रहे हैं। ऐसे में संक्रमण का डर और बढ़ गया है।
 
ऐसे में सवाल उठना भी चाहिए क्योंकि जब मरकज से कोरोना से फैल सकता है तो महाकुंभ से क्यों नहीं? इससे एक सवाल और उठता है कि हमारे जिम्मेदार लोग क्या वाकई 'जिम्मेदार' हैं? हम आपको यह जरूर बताना चाहेंगे कि 1891 के हरिद्वार कुंभ पर भी महामारी का साया था। इस दौरान तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने महामारी का फैलाव रोकने के लिए रेलवे स्टेशन पर ट्रेनें रोककर यात्रियों को आगे नहीं जाने दिया था। इसी तरह सड़कों पर भी लोगों को रोका गया था। बताया जाता है कि यह कुंभ संक्रमण मुक्त रहा था। 
 
पिछले दिनों ऋषिकेश क्षेत्र के एक बड़े ग्रुप होटल में 83 और एक आश्रम में 32 कोरोना मरीज सामने आए थे। इससे लोगों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक भी है क्योंकि यहां लोग अपने-अपने क्षेत्रों में जाएंगे, जो कि कोरोना के वाहक बन सकते हैं। सोमवती अमावस्या के शाही स्नान पर तो लाखों की संख्या में लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई थी। इतना ही नहीं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि स्वयं कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। हालांकि कुंभ में शामिल होने के लिए हरिद्वार पहुंच रहे लोगों के लिए 'नेगेटिव रिपोर्ट' अनिवार्य है, लेकिन इस पर कितना अमल हो पा रहा है, यह बड़ा सवाल हो सकता है।
 
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत का यह कहना की गंगा मां के आशीर्वाद से कोरोना संक्रमण नहीं फैलेगा, यह बयान एक 'जिम्मेदार व्यक्ति' का तो कतई नहीं हो सकता। वे अपनी बात के पक्ष में तर्क भी देते हैं कि कुंभ की तुलना मरकज ने नहीं की जा सकती। मरकज से कोरोना इसलिए फैला क्योंकि वे लोग बंद कमरे में थे, जबकि कुंभ खुले में है। इससे अच्छी कोई बात हो भी नहीं हो सकती कि मां गंगा के आशीर्वाद से कोरोना नहीं फैले, लेकिन यह भी सच है कि नदियों को जो हम देते हैं, वही वे हमें लौटाती हैं। यदि ऐसा नहीं होता गंगा शुद्धिकरण के लिए करोड़ों-अरबों रुपए की योजना नहीं बनाना पड़ती। 
 
वर्तमान में जो हालात हैं, उनमें 'आस्था' से ज्यादा जरूरी है लोगों का जीवन। यदि जीवन ही संकट में पड़ जाएगा तो आस्था का पालन कौन करेगा? ...और हिन्दू या सनातन संस्कृति तो प्र‍ाणीमात्र की सुरक्षा की चिंता करती है। उपनिषद में कहा भी कहा गया है- शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। अर्थात शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अत: शरीर को स्वस्थ बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है।
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शिवसेना का चुनाव आयोग पर ममता बनर्जी के साथ पक्षपात करने का आरोप