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पाकिस्तान को हराकर सैम मानेकशॉ बोले, याह्या खां ने बाइक के बचे 1 हजार नहीं दिए, बदले में आधा देश दे दिया...

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो : विजय दिवस पर विशेष

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, गुरुवार, 12 दिसंबर 2019 (14:30 IST)
3 अप्रैल, 1914 को अमृतसर के एक पारसी परिवार में जन्मे सैम मानेकशॉ'- पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ- एकमात्र ऐसे सेनाधिकारी थे, जिन्हें सेवानिवृत्ति से पहले ही पांच सितारा रैंक तक पदोन्नति दी गई थी। विदित हो कि दिवंगत एयर मार्शल अर्जन सिंह समेत देश में मात्र 3 सेना अधिकारी ऐसे हुए हैं जिन्हें यह सैनिक सम्मान प्राप्त हुआ। अमृतसर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मानेकशॉ नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हुए और बाद में देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे, जहां से कमीशन पाकर वह भारतीय सेना में भर्ती हुए थे।

'सैम बहादुर' के नाम से मशहूर सैम मानेकशॉ ने 7 जून 1969 को भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया और उसके बाद दिसंबर, 1971 में उन्हीं के नेतृत्व में भारत-पाक युद्ध हुआ। इसी युद्ध के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था। सैम मानेकशॉ के देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें वर्ष 1972 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाजा गया तथा जनवरी, 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया जिसके बाद वह सेवानिवृत्त हो गए थे।

उनके शानदार सैन्य करियर के दौरान उन्हें अनेकों सम्मान प्राप्त हुए और बहुत सी बातों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्हें सेना का बहुत ही दबंग और स्पष्टवादी अधिकारी माना जाता था और उनके इस गुण की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी कायल थीं। वे विरोध की परवाह नहीं करते थे और वे पिता की मर्जी के खिलाफ सेना में भर्ती हुए थे। उनके ही नेतृत्व में भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था और पाकिस्तान के 90000 सैनिकों को बंदी बनाया जो एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है।

कहा जाता है कि जब वे एक बार पाकिस्तान के वृद्ध पूर्व सैनिक से मिले थे तो उसने उनके पैरों में अपनी पगड़ी रख दी। विदित हो कि इसी पूर्व पाकिस्तानी सैनिक के चार सैनिक बेटे भारत में युद्धबंदी बनाए गए थे। जब उनके बारे में कोई बात चलती थी तो उसके परिजनों को उम्मीद नहीं थी कि उसके चारों बेटे एक दिन सही सलामत घर लौट आएंगे।

लेकिन इस सैनिक को भरोसा था कि जब तक भारतीय सेना में मानेकशॉ जैसे अधिकारी हैं तब तक उसके बेटों को कोई नुकसान नहीं होगा। जब उसके बेटे भारत से रिहा होकर पाकिस्तान पहुंचे तब उस सिपाही ने मानेशॉ के सामने अपनी कृतज्ञता को इस तरह जाहिर किया था। वे एक ऐसे अधिकारी थे जिनको लेकर पाकिस्तान के एक सैनिक के मन में भी इतना आदरभाव था और उसे भरोसा था कि मानेशॉ के रहते पाकिस्तानी सैनिकों के साथ किसी प्रकार का कोई दुर्व्यवहार नहीं होगा।

वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब इंदिरा गांधी ने उनसे भारतीय सेना की तैयारी के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, मैं हमेशा तैयार हूं-स्वीटी। और जब 1942 में म्यांमार (पूर्व बर्मा) में जापान से लड़ते हुए सात गोलियां लगी थीं फिर भी वह जिंदा रहे और ऐसे समय में भी उनका मजाकिया स्वभाव बरकरार रहा। जब हॉस्पिटल में सर्जन ने उनसे पूछा कि उनको क्या हुआ था तो मानेकशॉ ने जवाब दिया, 'मुझे एक खच्चर ने लात मार दी थी।' इसी तरह से जब उनसे पूछा गया कि अगर बंटवारे के समय वह पाकिस्तान चले गए होते तो 1971 के युद्ध में क्या होता? उन्होंने जवाब दिया, 'मेरे ख्याल से पाकिस्तान जीत गया होता।'

वे अपने सैनिकों का उत्साहवर्द्धन कैसे करते थे इसका एक भी एक उदाहरण है। अशांतिग्रस्त मिजोरम में एक बटालियन उग्रवादियों से लड़ाई में हिचक रही थी और लड़ाई को टालने की कोशिश कर रही थी। इसके बारे में जब मानेकशॉ को पता चला तो उन्होंने चूड़ियों का एक पार्सल बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को एक नोट के साथ भेजा। नोट में लिखा था, 'अगर आप दुश्मन से लड़ना नहीं चाहते हैं तो अपने जवानों को ये चूड़ियां पहनने को दे दें।' पर जब बटालियन ने ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया तो उन्होंने चूड़ियां वापस भेज देने को कहा।

वे वास्तविकता को बताने में किसी से भी नहीं डरते थे और जब 1971 में भारत-पाक युद्ध से पहले बिना किसी तैयारी के जब इंदिरा गांधी ने उनसे पूर्वी पाकिस्तान पर हमले के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि इस स्थिति में हार तय है। इससे इंदिरा गांधी को गुस्सा आ गया। उनके गुस्से की परवाह किए बगैर मानेकशॉ ने कहा, 'प्रधानमंत्री, क्या आप चाहती हैं कि आपके मुंह खोलने से पहले मैं कोई बहाना बनाकर अपना इस्तीफा सौंप दूं।'

भारत-पाक के बंटवारे से पहले वह और याह्या खान (1971 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति) सेना में एक साथ सेवा दे रहे थे। मानेकशॉ ने अपनी बाइक याह्या को बेची थी जिसका पैसा याह्या ने चुकाया नहीं था। बाद में जब 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को हरा दिया और बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया तो मानेकशॉ ने कहा, 'याह्या ने मेरी बाइक के 1,000 रुपए मुझे कभी नहीं दिए लेकिन अब उसने आधा देश दे दिया है।'

एक बार इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते जब सेना द्वारा विद्रोह की अफवाह फैली और श्रीमती गांधी ने इस बारे में सैम मानेकशॉ से पूछा। इस पर उन्होंने अपने ही अंदाज में जवाब दिया, 'आप अपने काम पर ध्यान दो और मैं अपने काम पर ध्यान देता हूं। राजनीति में मैं उस समय तक कोई हस्तक्षेप नहीं करूंगा, जब तक कोई मेरे मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगी।'

अपने प्रधानमंत्री को इस तरह का जवाब देने का साहस केवल उनके जैसे अधिकारी में था और उनके हर कथन की एक खास वजह होती थी। वे गोरखा सैनिकों की बहादुरी के कायल थे और सेना की गोरखा रेजिमेंट पर उनका कितना भरोसा था, यह उनके एक बयान से पता चलता है। एक बार उन्होंने गोरखा रेजिमेंट की तारीफ करते हुए कहा, अगर आपसे कोई कहता है कि वह नहीं डरता है तो वह या तो झूठा है या फिर गोरखा। ऐसे वीर और साहसी सपूत को आदरांजलि जो कि अपने न रहने के बाद भी बहुत सारी कहानियां छोड़ गया है जिन्हें हम और आप जैसे लोग याद करते हैं।

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