दो या तीन बच्चे होते हैं घर में अच्छे... हम दो हमारे दो... छोटा परिवार सुखी परिवार... हिन्दू हो या मुसलमान, एक परिवार एक संतान... ये ऐसे नारे हैं जो भारत में बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर लोगों में लोगों में जागरूकता लाने के लिए समय-समय पर भारत सरकार एवं समाजसेवी संस्थाओं ने दीवारों पर लिखकर या फिर इश्तहारों और विज्ञापनों के माध्यमों से लोगों तक पहुंचाए थे।
इसमें कोई संदेह नहीं लोगों में इसका असर भी हुआ, लेकिन सफलता उम्मीद के अनुरूप नहीं मिली। वर्तमान में भारत की आबादी 135 करोड़ के लगभग हो चुकी है। समय-समय पर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग भी उठती रही है। वर्ष 2014 में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद इस मांग ने और ज्यादा जोर पकड़ा।
यूपी में कानून लाने की तैयारी : उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के एक मसौदे के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2 बच्चों की नीति का उल्लंघन करने वाले को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने, पदोन्नति और किसी भी प्रकार की सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने से वंचित कर दिया जाएगा। राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार कर लिया है।
प्रारूप में कहा गया है- दो बच्चे के मानदंड को अपनाने वाले लोक सेवकों (सरकारी नौकरी करने वालों) को पूरी सेवा में मातृत्व या पितृत्व के दौरान दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि मिलेंगी। इसके अलावा राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत पूरे वेतन और भत्तों के साथ 12 महीने की छुट्टी और नियोक्ता के योगदान कोष में 3 प्रतिशत की वृद्धि की बात भी कही गई है।
कानून का विरोध भी : समय-समय पर उठने वाली मांग का इस आधार पर विरोध किया जाता है कि यह कानून मुस्लिमों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है। कुछ तथाकथित हिन्दू संगठन 'हम 5 हमारे 25' का नारा भी उछालते रहे हैं। यूपी में कानून बनाने की सुगबुगाहट के बीच संभल से समाजवादी पार्टी के विधायक इकबाल महमूद इसके विरोध में भी खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि देश में मुसलमानों ने जनसंख्या नहीं बढ़ाई है। जनसंख्या तो दलित और आदिवासी बढ़ा रहे हैं, जबकि सरकार जनसंख्या कानून की आड़ में मुसलमानों पर वार कर रही है।
जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019 : आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा ने 2019 में जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019 पेश किया गया था। यह प्राइबेट मेंबर बिल था। इस बिल में ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को दंडित करने और सभी सरकारी लाभों से भी वंचित करने का प्रस्ताव था। उस समय कुछ लोगों ने कहा था कि गरीब आबादी पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तो कुछ का कहना है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है।
2000 में गठित हुआ था आयोग : भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार की ओर से वर्ष 2000 में गठित वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी। आयोग ने 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी।
आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एमएन वेंकटचलैया थे, जबकि जस्टिस आरएस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस के पुन्नैया इसके सदस्य थे। पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन तथा सोली सोराबजी, लोकसभा के महासचिव सुभाष कश्यप, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा, तत्कालीन सांसद सुमित्रा कुलकर्णी, वरिष्ठ पत्रकार सीआर ईरानी और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ राजनयिक आबिद हुसैन भी इस आयोग में शामिल थे।
उपाध्याय ने दिया था प्रजेंटेशन : वर्ष 2018 में भाजपा नेता सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में बहस कराए जाने की मांग की थी। उपाध्याय ने पीएमओ में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर 2018 में एक प्रजेंटेशन भी दिया था। उन्होंने अपने प्रजेंटेशन में वेंकटचलैया आयोग का भी उल्लेख किया था। इससे भी एक कदम आगे हिन्दू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामंडलेश्वर प्रबोधानंद गिरि ने मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि दो से ज्यादा बच्चे होने पर नागरिकता समाप्त करने की वकालत की थी। पूर्व में भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव भी राज्यसभा में जनसंख्या विस्फोट का मुद्दा उठा चुके हैं।
आपातकाल के दौरान नसबंदी : 1975 के आपातकाल के दौरान अपने विवास्पद फैसलों के कारण इंदिरा गांधी विपक्ष के निशाने पर रही थीं। लेकिन, उस दौरान जनसंख्या नियंत्रण के लिए पुरुषों की जबरिया नसबंदी की खूब आलोचना हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने परोक्ष रूप से नसबंदी अभियान की कमान संभाली थी। उस समय शिक्षकों से लेकर बड़े नौकरशाहों को नसबंदी अभियान को सफल बनाने के लिए टारगेट दिया गया था। लक्ष्य पूरा न होने पर वेतन काटने की चेतावनी भी दी गई
इसका असर यह रहा कि इस अभियान के एक साल में ही 62 लाख पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई। उस समय का माहौल ऐसा था कि ग्रामीण इलाकों में सरकारी गाड़ी देखकर ही लोग खेतों और जंगलों में जाकर छिप जाते थे। विभिन्न रिपोर्टों की मानें तो नसबंदी के दौरान हुई लापरवाहियों के कारण 2000 से ज्यादा पुरुषों की मौत भी हो गई थी। प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी की किताब 'मिडनाइट चिल्ड्रन' में इस अभियान का जिक्र है।
उत्तराखंड में भी हुई थी कोशिश : उत्तराखंड में भी वर्ष 2019 में पंचायत एक्ट में प्रावधान किया गया था कि 2 से ज्यादा बच्चे वाले प्रत्याशी पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा था कि इस संशोधन को लागू करने की कट ऑफ डेट 25 जुलाई 2019 होगी। अर्थात इस तारीख के बाद 2 से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी पंचायत चुनाव लड़ने के अयोग्य माने जाएंगे, जबकि 25 जुलाई 2019 से पहले जिसके तीन बच्चे हैं, वह चुनाव लड़ सकते हैं।
चीन के बाद भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है और यही गति रही तो इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत पहले नंबर भी पहुंच जाए। हालांकि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर इस तरह की मांग जब-जब उठती हैं तो उन्हें धार्मिक रंग दे दिया जाता है। देश के सीमित संसाधनों, रोजगार के अवसरों और गरीबी को देखते हुए इस मामले में सर्वमान्य हल जरूर ढूंढना चाहिए। यदि इस संबंध में कोई कानून बनाया भी जाता है तो वह किसी धर्म या वर्ग विशेष को लक्ष्य करके नहीं बनाया जाना चाहिए, बल्कि देश हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।