जम्मू-कश्मीर के नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब 50 साल तक कांग्रेस में रहकर अन्तत: पार्टी को बाय-बाय बोल दिया है। इसे कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी कांग्रेसी नेता ने पार्टी छोड़ी है। वर्षों पहले पहले अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी, माधव राव सिंधिया, शरद पवार, ममता बनर्जी आदि नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर नेता बाद में कांग्रेस में लौट आए, लेकिन ममता बनर्जी और शरद पवार ने नई पार्टियों का गठन किया और सफलता के शिखर को भी छुआ। ममता अपने दम पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, वहीं शरद पवार की एनसीपी महाराष्ट्र की ताकतवर पार्टी है। वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है, लेकिन हम यहां बात करेंगे उन नेताओं के बारे में जिन्होंने हाल ही में या फिर पिछले कुछ सालों में कांग्रेस छोड़कर पार्टी को झटका दिया है। इनमें दो नेता ऐसे भी हैं जो इस समय मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2014 से 2021 के बीच 177 सांसदों और विधायकों कांग्रेस को अलविदा कहा है। आइए जानते हैं उन्हीं में से कुछ खास नेताओं के बारे में...
गुलाम नबी आजाद : मनमोहन मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री एवं राज्यसभा में कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष रह चुके गुलाम नबी आजाद ने 26 अगस्त, 2022 को 50 साल बाद कांग्रेस छोड़कर हड़कंप मचा दिया। अब वे जम्मू कश्मीर में एक नए दल का गठन करने जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के आगामी चुनाव को लेकर उनका यह फैसला काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यदि उनकी पार्टी कुछ सीटें जीतने में सफल रहती है तो वे सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। बताया जा रहा है कि जरूरत पड़ी तो वे भाजपा से भी हाथ मिला सकते हैं। हालांकि वे अपने मकसद में कितने सफल होंगे, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया : मध्यप्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे और राहुल गांधी के करीबी ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना सीट से हार गए थे, लेकिन उससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी। लेकिन, सिंधिया 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। नतीजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश में 15 साल के बाद बनी कांग्रेस की सरकार 15 महीनों में ही सत्ता से बाहर हो गई। सिंधिया को इसका इनाम भी मिला और वे केन्द्र में नागरिक उड्डयन मंत्री बने। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में अपने समर्थक विधायकों को भी उन्होंने मंत्री पद के साथ संगठन में भी जगह दिलवाई। कह सकते हैं कि भाजपा में आना उनके लिए फायदे का ही सौदा रहा।
हिमंता बिस्वा सरमा : असम के ताकतवर नेता और अपने बेबाक और विवादित बोलों के लिए मशहूर हिमंता बिस्वा सरमा इस समय राज्य के मुख्यमंत्री हैं। 2001 में पहली बार कांग्रेस पार्टी से विधायक बनने वाले सरमा 4 बार कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। हालांकि अगस्त 2015 में राहुल गांधी से नाराज होकर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। हिमंत की गिनती उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जिनकी विरोधी नेता भी सराहना करते हैं। 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के पीछे हिमंत की ही बड़ी भूमिका मानी जाती है। दरअसल, हिमंता अपने राजनीतिक गुरु तरुण गोगोई से नाराज थे क्योंकि वे अपने बेटे गौरव गोगोई को आगे बढ़ा रहे थे।
वायएस जगनमोहन रेड्डी : आंध्रप्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वायएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी इस समय आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। जगन ने कांग्रेस पार्टी से ही अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। 2009 में आंध्रप्रदेश की कडपा सीट से रेड्डी पहली बार सांसद चुने गए।
पिता वायएसआर की सितंबर 2009 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत के बाद पार्टी के ज्यादातर विधायक जगन को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में थे, लेकिन सोनिया और राहुल ने इसके लिए हरी झंडी नहीं दी। इससे नाराज होकर उन्होंने मार्च 2011 में वायएसआर कांग्रेस के नाम से नई पार्टी का गठन किया। 2014 में जगन की पार्टी 70 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और वे नेता प्रतिपक्ष बने। अगले चुनाव यानी 2019 में वायएसआर कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया और वे राज्य के मुख्यमंत्री बने।
जितिन प्रसाद : जितिन प्रसाद किसी समय राहुल गांधी ब्रिगेड के सदस्य रह चुके हैं, लेकिन असंतोष के चलते उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। यूपी के दिग्गज कांग्रेस नेता रहे जितेन्द्र प्रसाद बेटे जितिन इस समय यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।
रीता बहुगुणा जोशी : कांग्रेस के दिग्गज नेता और उत्तर प्रेदश के मुख्यमंत्री रहे स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी इस समय प्रयागराज सीट से भाजपा की सांसद हैं। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहीं रीता उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में वे अपने बेटे को विधानसभा उम्मीदवार बनवाना चाहती थीं, लेकिन बात नहीं बन पाई। इस समय वे भाजपा में भी असंतुष्ट बताई जाती हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह : पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हाईकमान से असंतुष्ट होकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया और अपनी अलग पार्टी बना ली। दरअसल, सिंह नवजोत सिंह सिद्धू के पार्टी में बढ़ते दखल से नाराज थे और बाद में उन्हें मुख्यमंत्री से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसका हश्र यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति हो गई। सिद्धू इस समय जेल में हैं, जबकि कैप्टन भी राजनीकि वनवास भोग रहे हैं।
कपिल सिब्बल : कांग्रेस सरकार में विज्ञान एवं तकनीकी, मानव संसाधन, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे मंत्रालयों में सेवाएं दे चुके सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल वर्तमान में समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं। कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 के सदस्य रहे कपिल ने इसी साल 2022 में कांग्रेस से नाता तोड़ा है। वे भारत के अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल भी रह चुके हैं। कांग्रेस छोड़ने का उन्हें बहुत फायदा हुआ हो यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन संसद पहुंचने की उनकी ख्वाहिश जरूर एक बार फिर पूरी हो गई।
प्रियंका चतुर्वेदी : कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में टीवी डिबेट से लेकर विभिन्न मंचों पर बेबाकी से कांग्रेस की बात रखने वाली प्रियंका चतुर्वेदी ने 2019 यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी थी कि कुछ समय से उनके काम कद्र नहीं हो रही है। हालांकि उस समय यह भी कहा गया था कि वे मथुरा से टिकट चाहती थीं। वे कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में शामिल हो गई थीं, शिवसेना ने भी उन्हें उपकृत करते हुए राज्यसभा भेजा।
जयंती नटराजन : दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वालीं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन ने जनवरी 2015 को कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। पार्टी छोड़ते समय उन्होंने राहुल गांधी समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं पर बलि का बकरा बनाने का आरोप लगाया था। नटराजन का परिवार कांग्रेस के साथ 1960 के दशक से जुड़ा हुआ था। हालांकि 1990 के दशक में भी नटराजन ने नरसिंहराव से पटरी नहीं बैठने के कारण कांग्रेस छोड़ी थी, लेकिन राव के हटने के बाद वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गई थीं। इंद्रकुमार गुजराल सरकार में वे कोयला एवं नागरिक उड्डयन मंत्री तथा मनमोहन सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री भी रही थीं।
चौधरी बीरेंदर सिंह : हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज किसान नेताओं में शुमार रहे चौधरी बीरेन्दर सिंह ने 2014 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा। जीतने के बाद वे मोदी सरकार में मंत्री भी बने। उन्होंने उस समय राज्य के तत्कालीन सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा के विरोध में छोड़ी थी।
इन नेताओं ने भी छोड़ी कांग्रेस : पिछले साल यानी 2021 में ही महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के पाले में चली गईं। इससे पहले झारखंड में अजय कुमार, हरियाणा में अशोक तंवर और त्रिपुरा में प्रद्युत देव बर्मन जैसे युवा नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। हालांकि अजय कुमार की अब कांग्रेस में वापसी हो चुकी है। कभी सोनिया गांधी के करीबी रहे टॉम वडक्कन, महाराष्ट्र में रंजीत देशमुख और उर्मिला मतोंडकर भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
इनके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल, हार्दिक पटेल, नरेश रावल और राजू परमार, पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़, पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार, आरपीएन सिंह, गोविंददास कोंथौजामी, विजयन थोमस, ए नमस्सिवयम, वीएम सुधीरन, पीसी चाको, अभिजीत मुखर्जी, लुइज़िन्हो फलेरो, ललितेश त्रिपाठी, कीर्ति आजाद, मुकुल संगमा, अदिति सिंह, रवि एस नाइक, खुशबू सुंदर, मौसम नूर, अल्पेश ठाकुर, कृपाशंकर सिंह, पानाबाका लक्ष्मी, एपी अब्दुल्लाकुट्टी, राधाकृष्ण विखे पाटिल, भुवनेश्वर कलिता, संजय सिंह, एसएम कृष्णा, नारायण राणे, चंद्रकांत कवलेकर, अलेक्जेंडर लालू हेकी, यानथुंगो पैटन, अशोक चौधरी, शंकरसिंह वाघेला, यशपाल आर्य, रवि किशन, बरखा शुक्ला सिंह, विश्वजीत राणे, विजय बहुगुणा, एन बिरेन सिंह, अजित जोगी, सुदीप रॉय बरमन, पेमा खांडू, हरक सिंह रावत, गिरिधर गमांग, दग्गुबाती पुरंदेश्वरी, जगदंबिका पाल, जीके वासन, सत्पाल महाराज आदि नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। हालांकि इनमें से कुछ ऐसे भी नेता हैं, जिन्हें पार्टी ने निष्कासित किया था।