मुस्लिम समाज में तीन तलाक की व्यवस्था पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को बड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने तीन तलाक को असंवैधानिक और महिला अधिकारों के खिलाफ बताया है। साथ ही कहा है कि यह महिलाओं के खिलाफ क्रूरता है। खंडपीठ ने साफ कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस फैसले को चुनौती देने की बात कही है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि समाज का एक वर्ग तीन तलाक पर इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या कर रहा है। हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। पवित्र कुरान में भी तीन तलाक को अच्छा नहीं माना गया है। कुरान में कहा गया है कि जब सुलह के सभी रास्ते बंद हो जाएं तभी तलाक दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकलपीठ ने यह फैसला दो महिलाओं की अलग अलग याचिकाओं पर सुनाया है। ये महिलाएं हिना और उमर बी हैं। इस मसले पर उच्चतम न्यायालय में भी एक मामला विचाराधीन है। उच्चतम न्यायालय में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक का समर्थन और केन्द्र सरकार इसका विरोध कर रही है।
बोर्ड ने कहा है कि तीन तलाक की व्यवस्था में परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। उसने कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा तलाक को अंतिम रूप देने से पहले सहमति बनाने के लिए तीन माह की 'नोटिस की अवधि' को अनिवार्य करने के सुझावों को भी नकार दिया है।