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इस गांव में सायरन बजते ही हर घर में बंद हो जाते हैं मोबाइल और टीवी

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, रविवार, 25 सितम्बर 2022 (16:30 IST)
सांगली, इस दौर में मोबाइल और इंटरनेट के बगैर जिंदगी अधूरी है। कोई काम इसके बगैर नहीं होता है। लोग घंटों तक मोबाइल, सोशल मीडिया, इंटरनेट और टीवी पर गुजार रहे हैं। ऐसे में जिंदगी पर इसका बुरा असर भी हो रहा है। ऐसे में कई शहरों में मोबाइल और इंटरनेट से बचने के लिए अगल अलग तरह के तरीके अपना रहे हैं। ऐसा ही महाराष्‍ट्र का एक गांव है, जहां लोगों को मोबाइल से डिटॉक्‍स करने के लिए एक नया तरीका अपनाया है।

कमाल की बात तो यह है कि लोग इस मुहिम में भाग ले रहे हैं और इसमें अपना योगदान दे रहे हैं। यह मुहिम महाराष्ट्र के सांगली गांव में चल रही है, जहां इंटरनेट के गलत प्रभाव से बचने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया है। गांव के लोग डेढ़ घंटे के लिए अपने मोबाइल, टीवी और दूसरे गैजेट्स को बंद कर लेते हैं। इसके लिए मंदिर से बकायादा सायरन बजाया जाता है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मोबाइल और टीवी बंद करने का प्रस्ताव गांव के सरपंच विजय मोहिते ने रखा। जिसके बाद कई लोग उनके इस प्रस्‍ताव से सहमत हो गए। दिलचस्‍प है कि मुहिम में कई लोग योगदान दे रहे हैं।

गांव के स्थानीय मंदिर से शाम 7 बजते ही एक सायरन बजता है। सायरन बजते ही लोग अपने मोबाइल फोन, टेलीविजन सेट और दूसरे गैजेट्स को तुरंत बंद कर लेते हैं। इस दौरान लोग किताबें पढ़ते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई में लग जाते हैं। इसके अलावा लोग एक दूसरे के साथ आमने-सामने बैठ कर बातें करते हैं। ठीक डेढ़ घंटे बाद यानी रात 8.30 बजे दूसरा अलार्म बजता है। इसके बाद लोग फिर से अपने माबाइल और टीवी को स्वीच ऑन कर लेते हैं।

सरपंच मोहिते ने पीटीआई को बताया ‘कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास होने के चलते बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन आ गए। जबकि माता-पिता ज्यादा देर तक टीवी देखने लगे। दोबारा फिजिकल क्लास शुरू होने पर टीचर्स को लगा कि बच्चे आलसी हो गए हैं, वो पढ़ना-लिखना नहीं चाहते थे। साथ ही ज्यादातर बच्चे स्कूल के समय से पहले और बाद में अपने मोबाइल फोन में लगे रहते थे। इसलिए मैंने डिजिटल डिटॉक्स के विचार को सामने रखा’

अभी शाम 7 बजे से 8.30 बजे के बीच, लोग अपने मोबाइल फोन एक तरफ रखते हैं, टेलीविजन सेट बंद कर देते हैं और पढ़ने, पढ़ने, लिखने और बातचीत पर ध्यान देने लगते हैं। इस पहल को लागू किया जा रहा है या नहीं, इसकी निगरानी के लिए एक वार्ड समिति का गठन किया गया है। जो इस बात का ध्‍यान रखती है।

उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले डेढ़ घंटे की अवधि का प्रस्ताव दिया था। शुरू में, हिचकिचाहट थी, क्योंकि लोग सोच रहे थे कि क्या मोबाइल और टीवी स्क्रीन से दूर रहना संभव है। स्वतंत्रता दिवस पर हमने महिलाओं की एक ग्राम सभा बुलाई। एक सायरन खरीदने का फैसला किया। फिर आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सेविका, ग्राम पंचायत कर्मचारी, सेवानिवृत्त शिक्षक डिजिटल डिटॉक्स के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए घर-घर गए। बस मुहिम लागू करते ही कई लोग इसमें शामिल हो गए और अब सभी इसमें अपना योगदान दे रहे हैं।

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