Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

डोकलाम गतिरोध : भारत-चीन के आर्थिक संबंधों का नया आयाम

हमें फॉलो करें डोकलाम गतिरोध : भारत-चीन के आर्थिक संबंधों का नया आयाम
, सोमवार, 21 अगस्त 2017 (16:45 IST)
नई दिल्‍ली। भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर पिछले दो माह से जारी तनातनी दोनों देशों के संदेहभरे संबंधों का एक पहलू भर है। दोनों देशों के बीच 1962 के बाद कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं हुआ है लेकिन आर्थिक मोर्चे पर शह और मात का खेल चलता रहता है।
     
डोकलाम गतिरोध दोनों देशों की व्यापारिक तथा आर्थिक संबंधों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। चीन ने हाल के दशक में दक्षिण एशिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए व्यापार, वित्तीय मदद, निवेश और राजनयिक संबंधों का सहारा लिया है। दक्षिण एशिया में उसके बढ़ते कदम भारत के लिए राजनीतिक रूप और आर्थिक रूप दोनों तरह से घातक हैं। भारत नेपाल, श्रीलंका, भूटान और बंगलादेश के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध रखता है और इसी वजह से वह अब तक इन देशों के लिए सबसे अच्छा व्यापारिक साझेदार रहा, लेकिन चीन पिछले कुछ दशक के दौरान दक्षिण एशियाई देशों के लिए सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है।
          
वह 2005 में भारत को पछाड़ते हुए बांग्‍लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया और उसे सस्ते सूती तथा अन्य कपड़े निर्यात करने लगा। हालांकि नेपाल और श्रीलंका में चीन अभी भारत से पीछे है, लेकिन वह व्यापार का यह अंतर बड़ी तेजी से पाट रहा है। भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन 2005 से वहां चीन का निर्यात कई गुणा बढ़कर चार अरब डॉलर का हो गया है।
              
चीन ने इसके अलावा पाकिस्तान में भी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के विकास के लिए 46 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। जो चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) कार्यक्रम का अहम हिस्सा है, लेकिन चीन के भरसक प्रयास के बावजूद भारत ने ओबीओआर कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया है। भारत सीपीईसी को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है और उसने ओबीओआर कार्यक्रम का इसीलिए बहिष्कार किया है जिससे चीन के मन में अपने इस कार्यक्रम की सफलता को लेकर संदेह पैदा हो गया है।
  
अफगानिस्तान में भारत और चीन दोनों का व्यापार एक अरब डॉलर से कम है और दोनों देश वहां अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं। भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के रास्ते तो चीन पाकिस्तान के रास्ते गुजरने वाले आर्थिक गलियारे के रास्ते अफगानिस्तान में अपनी आर्थिक पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं।              
 
सिक्किम के निकट भारत, भूटान और चीन से लगते ट्राई जंक्शन क्षेत्र में भारतीय सैनिकों द्वारा चीनी सेना की सड़क बनाने कोशिशों को नाकाम किए जाने के बाद से वहां पिछले दो माह से गतिरोध बना हुआ है। परमाणु हथियार से लैस इन दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद काफी पुराना है और 1962 में इसे लेकर युद्ध भी हो चुका है। चीन की कई देशों के साथ भौगोलिक और जलीय सीमाएं जुड़ी हैं और इनमें से अधिकतर के साथ उसका सीमा विवाद है।
         
इसके बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। गत वित्त वर्ष दोनों देशों के बीच 71.5 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। हालांकि इस व्यापार में अधिकतर हिस्सेदारी चीन की ही है। चीन ने भारत को गत वित्त वर्ष करीब 61.3 अरब डॉलर का निर्यात किया था। भारत चीन से मुख्य रूप से दूरसंचार उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जे, कंप्यूटर हार्डवेयर, दवाएं, लोहा और स्टील का आयात करता है और उसे लौह अयस्क, सूती धागे, पेट्रोलियम उत्पाद और प्लास्टिक के कच्चे माल का निर्यात करता है।                    
    
भारतीय बाजार में अपनी गहरी पैठ बना चुके चीन से भारत ने कई बार वहां के बाजार तक अपनी पहुंच बढ़ाने का आग्रह किया लेकिन चीन की सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। अपने कारोबारियों की हितों की रक्षा के लिए भारत चीन से आयातित 93 उत्पादों पर डंपिंगरोधी शुल्क भी लगाता है और अन्य 40 उत्पादों पर यह शुल्क लगाने पर विचार कर रहा है।
       
चीन ने अपने उत्पादों पर डंपिंगरोधी शुल्क लगाने का विरोध भी किया है और वहां का मीडिया बार-बार इस बात को उठाता रहता है। चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार, व्यापार घाटा कम करने का भारत का लक्ष्य तो अच्छा है लेकिन उसे इसके लिए चीन के उत्पादों पर डंपिंगरोधी शुल्क लगाने का कदम नहीं उठाना चाहिए। मीडिया में आई खबरों में चीन स्थित भारत के दूतावास का हवाला देते हुए कहा गया है कि साल दर साल आधार पर चीन को भारत का निर्यात 12.3 प्रतिशत घटकर 11.75 अरब डॉलर रह गया है जबकि चीन से उसका आयात दो फीसदी बढ़ गया है।
         
भारत में दीपावली, स्वतंत्रता दिवस, गणेश चतुर्थी और रक्षाबंधन जैसे त्योहारों के दौरान सोशल मीडिया पर चीन के सामान को बहिष्कृत करने की मुहिम छेड़े जाने के प्रति भी ड्रैगन ने आपत्ति जताई है। चीन के मीडिया का कहना है कि इस स्वदेशी मुहिम का खामियाजा भारत के आम उपभोक्ताओं को ही उठाना पड़ेगा, क्योंकि भारत में जितनी खपत है, उसे भारतीय कंपनियां पूरा नहीं कर सकती हैं।
         
चीन की सरकारी मीडिया ने डोकलाम विवाद, डंपिंगरोधी शुल्क और स्वदेशी मुहिम का विरोध करते हुए कहा है कि चीन की कंपनियां भारत में करीब 32 अरब डॉलर के निवेश की योजनाएं बना रही हैं, जिससे इस व्यापार घाटे को पाटा जा सकता है। चीन का सानी ग्रुप पवन ऊर्जा क्षेत्र में करीब 10 अरब डॉलर तथा डालियान वांडा ग्रुप रिएल एस्टेट परियोजनाओं में पांच अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रहा है, लेकिन अगर भारत का यही रुख रहा तो यह निवेश वहां नहीं किया जाएगा। (वार्ता)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अन्नाद्रमुक के दोनों गुटों का विलय