नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें विभाजन के समय पाकिस्तान द्वारा भारत से लिए गए कर्ज की वसूली का अनुरोध किया गया था, जो कि अब बढ़कर करीब एक हजार अरब रुपए तक पहुंच चुका है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि इस राशि की वसूली के लिए केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने कहा कि यह सरकार से जुड़ी नीति का मामला है और अदालत इस संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती।
पीठ ने कहा कि यह मुद्दा सरकार के संज्ञान में है और वह जो चाहे कदम उठा सकती है तथा अदालत इस संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती।
अदालत ने इसके साथ ही ओम सहगल की याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें दलील दी गई कि पाकिस्तान लगातार कश्मीर समेत भारत पर हमला करने के लिए भारत सरकार के पैसे का ही उपयोग कर रहा है। याचिका में कहा गया कि पड़ोसी देश द्वारा छेड़ी गई लड़ाई के कारण अनेक सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं।
केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता की भावनाएं सही हो सकती हैं, लेकिन यह नीतिगत मुद्दा है और इसे सरकार पर ही छोड़ देना चाहिए।