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भारत का टैलेंट अमेरिका की जरूरत, डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां नाकाम

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 27 मार्च 2025 (16:00 IST)
Trump policy and India tallent : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सख्त टैरिफ और आव्रजन नीतियों के बावजूद, भारत के प्रतिभाशाली युवाओं की ताकत ने अमेरिकी कंपनियों को भारतीय शहरों में अपने वैश्विक परिचालन को बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु, हैदराबाद और गुरुग्राम जैसे शहर अब अमेरिकी कॉर्पोरेट्स के लिए ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) के केंद्र बन गए हैं, और यह रुझान थमने का नाम नहीं ले रहा। ALSO READ: ऑटो मोबाइल सेक्टर पर ट्रंप टैरिफ की मार, आयातित वाहनों पर 25 प्रतिशत शुल्क
 
भारत में अमेरिकी कंपनियों का विस्तार: रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2024 तक 1,800 से अधिक विदेशी कॉर्पोरेट ऑफिस स्थापित हो चुके हैं, जो 1.9 मिलियन भारतीयों को रोजगार दे रहे हैं। जेपीमॉर्गन चेस जैसे दिग्गज के भारत में 55,000 कर्मचारी हैं, जबकि टारगेट, लोव्स और गूगल जैसी कंपनियां भी हजारों भारतीय प्रतिभाओं को नौकरियां दे रही हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक यह संख्या 2.8 मिलियन तक पहुंच सकती है। यह ट्रम्प प्रशासन के उस रुख के बावजूद है, जिसमें भारत के साथ 46 बिलियन डॉलर के व्यापार घाटे और अवैध आव्रजन को लेकर नाराजगी जताई गई है।
 
बाइडन के दौर का आंकड़ा: जो बाइडन के कार्यकाल (2021-2025) के दौरान भी अमेरिकी कंपनियों ने भारत में भर्तियों को तेजी दी थी। 2022 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बाइडन के पहले दो वर्षों में भारत में जीसीसी की संख्या में 20% की वृद्धि हुई थी, और लगभग 3 लाख नए रोजगार सृजित हुए थे। उस समय कोविड महामारी के बाद रिमोट वर्क का चलन बढ़ा था, जिसने भारत को तकनीकी प्रतिभाओं का हब बनने में मदद की। ट्रम्प के दोबारा सत्ता में आने के बाद भी यह गति बरकरार है, जो भारतीय युवाओं की बढ़ती मांग को दर्शाता है।
 
क्यों चुन रहा है अमेरिका भारत को? : विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में कुशल कर्मचारियों की कमी और भारत में हर साल 1.2 मिलियन इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स का होना इसकी बड़ी वजह है। भारतीय कर्मचारियों का वेतन अमेरिकी कर्मचारियों की तुलना में 25-30% कम है, लेकिन उनकी उत्पादकता और "स्केल करने" की क्षमता कंपनियों को आकर्षित करती है। जिनोव के सीईओ परी नटराजन कहते हैं, "कोविड ने साबित कर दिया कि टीमें कहीं से भी काम कर सकती हैं। भारत इस मामले में सबसे आगे है।"
 
महामारी ने इस रुझान को और तेज किया। सिलिकॉन वैली की कंपनी प्योर स्टोरेज ने बेंगलुरु में कैलिफोर्निया की तर्ज पर ऑफिस बनाए, तो पुरानी कंपनियों जैसे पिटनी बोव्ज ने अपने 85% तकनीकी कार्यबल को भारत में तैनात कर दिया। बेंगलुरु जैसे शहरों में रियल एस्टेट की कीमतें बढ़ रही हैं और प्रतिभाओं के लिए प्रतिस्पर्धा चरम पर है, फिर भी 2025 में 100 नए जीसीसी खुलने की उम्मीद है।
 
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भारत के लिए सुनहरा मौका: यह ट्रेंड भारत के लिए बेहद अहम है, जहां हर साल 1 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होती है। अमेरिकी कंपनियों का यह भरोसा अब ट्रम्प के टैरिफ और राजनीतिक बयानबाजी से परे जा चुका है। बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर कहते हैं, "हमारी मेहनत और स्किल्स की वजह से दुनिया हम पर भरोसा कर रही है। यह भारत के युवाओं के लिए गर्व की बात है।"
 
हालांकि, बढ़ते जीसीसी के साथ चुनौतियां भी हैं। शहरों में बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ रहा है और प्रतिभा को बनाए रखने के लिए कंपनियों को बेहतर सुविधाएं देनी पड़ रही हैं। फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि अगले दशक में भारत अमेरिकी कॉर्पोरेट्स के लिए सबसे बड़ा हब बन सकता है। ट्रम्प की नीतियां भले ही सख्त हों, लेकिन भारतीय प्रतिभा की चमक को रोकना अब उनके बस से बाहर है।

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