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पुलवामा का बदला, भारतीय सेना का ट्‍वीट- ‍हम क्षमाशील हैं मगर कायर नहीं...

हमें फॉलो करें पुलवामा का बदला, भारतीय सेना का ट्‍वीट- ‍हम क्षमाशील हैं मगर कायर नहीं...
, मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019 (11:10 IST)
नई दिल्ली। पुलवामा में शहीद हुए 40 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की शहादत का बदला भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर लिया है। इस हमले में वायुसेना के विमानों ने करीब 300 आतंकियों को 'दोजख की आग' में झोंक दिया। 
 
इस हमले के बाद एडीजी पीआई इंडियन आर्मी ने वीर रस के कवि रामधारीसिंह दिनकर की पंक्तियों को उद्धृत कर परोक्ष रूप से कहा कि हम क्षमाशील हैं, लेकिन कायर नहीं। दिनकर जी इस कविता का शीर्षक है 'शक्ति और क्षमा'। ट्‍वीट में परोक्ष रूप से कहा गया है कि शत्रु हमारी क्षमाशीलता को कायरता समझेगा। 
 
सेना के इस ट्‍वीट के जवाब में ट्‍विटर पर भारतीयों ने जमकर समर्थन किया। सरोजीत जना ने कहा कि उखाड़ फेंको शत्रुओं को, उखाड़ फेंको गद्दारों को। विश्वकर्मा किरण ने ट्‍विट कर कहा- लातों के भूत बातों से नहीं मानते, भारतीय सेना का सराहनीय कदम। 
 
सचिन नामक ट्‍विटर हैंडल पर लिखा गया कि वाह मोदी जी, अब अगर पाकिस्तान 200-300 आतंकियों की मौत की पुष्टि करता है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मर गया और नहीं करता तो हाफिज़ और जैश वाले मुखालफत कर देंगे। बाप-बाप होता हैं, बेटा तो बेटा ही है।   
 
पढ़ें विस्तार से दिनकरजी की कविता
 
शक्ति और क्षमा
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
 
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
 
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
 
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
 
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
 
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
 
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
 
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
 
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से,
उठी धधक अधीर पौरुष की,
आग राम के शर से।

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