नई दिल्ली। खराब मौसम से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए मौसम विभाग ने पूर्वानुमान का एक नया मॉडल तैयार किया है, जो यूरोप के बाद सर्वश्रेष्ठ मॉडल है। इससे खराब मौसम का ज्यादा सटीक पूर्वानुमान मिल सकेगा तथा प्रशासन को तैयारी के लिए ज्यादा समय मिलेगा।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. राजीवन ने शुक्रवार को 'इंसेम्बल प्रेडिक्शन सिस्टम' नामक इस मॉडल को कमीशन करते हुए बताया कि अब तक मौसम विभाग 23 किलोमीटर के रिजॉल्यूशन के साथ मौसम की भविष्यवाणी करता था, जबकि नए मॉडल के साथ 12 किलोमीटर रिजॉल्यूशन के साथ पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। इससे प्रखंड स्तर पर पूर्वानुामन उपलब्ध होगा।
राजीवन ने कहा कि नए मॉडल के साथ ही भारत मौसम पूर्वानुमान में दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। इससे बेहतर मॉडल सिर्फ 'यूरोपीयन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फॉरकास्ट' के पास है। वह नौ किलोमीटर रिजॉल्यूशन के साथ पूर्वानुमान जारी करता है। इसके अलावा अमेरिका का मॉडल भी 12 किलोमीटर रिजॉल्यूशन का इस्तेमाल करता है।
नया मॉडल भारतीय मौसम विभाग, पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी तथा नोएडा स्थित राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मिलकर विकसित किया है। इसमें पुणे और नोएडा स्थित केंद्रों में 450 करोड़ रुपए की लगात से आठ पेटाफ्लॉप स्पीड वाले कंप्यूटर लगाने तथा आंकड़ों के विश्लेषण की बेहतर तकनीकों के इस्तेमाल का योगदान रहा है।
रिजॉल्यूशन बेहतर होने के अलावा मुख्य बदलाव यह होगा कि अब तक जहां मौसम विभाग की 'बारिश, शीतलहर आदि की संभावना' की बात कहता था अब वह संभाव्यता का प्रतिशत भी बताएगा। राजीवन ने बताया कि पहले मौसम विभाग प्रशासन को यह बताता था कि इस 23 किलोमीटर के दायरे में भारी बारिश, लू या शीतलहर की संभावना है।
विभाग अब वह 12 किलोमीटर के दायरे के लिए चेतावनी जारी करने की स्थिति में होगा। इससे प्रशासन बेहतर तरीके से उस इलाके पर फोकस कर पाएगा। हालांकि यह मॉडल आंधी-तूफान के साथ बिलजी कड़कने के पूर्वानुमान में सुधार नहीं कर पाएगा। इस मॉडल के पूर्वानुमान का लाभ कृषि, जल संसाधन, पर्यटन तथा सौर एवं पवन ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर प्रबंधन के लिए भी किया जा सकेगा। (वार्ता)