हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में बदलने के तुर्की राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दुआन के फैसले का अब दुनियाभर में विरोध शुरू हो गया है। पहले तुर्की के जाने-माने और नोबेल सम्मानित लेखक ओरहान पामुक के साथ ही वहां के कई उदारवादी नेताओं और शख्सियतों ने इस पर ऐतराज जताया था। अब भारत में भी विरोध के स्वर सुनाई आ रहे हैं।
शायर और गीतकार जावेद अख्तर ने हागिया सोफिया को लेकर एक ट्वीट किया है।
उन्होंने लिखा है,
‘राष्ट्रीय सौहार्द का प्रतीक हागिया सोफिया इमारत को मस्जिद में तब्दील करने से पहले तुर्कीश सरकार को वहां स्थित कमाल अता तुर्क पाशा की प्रतिमाओं को भी गिरा देना चाहिए, जिसने तुर्की को सेक्यूलरिज्म और शांति की राह दिखाई थी’
हालांकि कई लोगों ने जावेद अख्तर की इस बात से सहमति जताई, लेकिन ज्यादातर लोगों ने उन्हें ट्रोल कर दिया।
मार्केंडेय काटजू ने जावेद अख्तर को जवाब देते हुए लिखा,
‘हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने का अर्दुआन का फैसला लोगों का ध्यान भटकाने का एक तरीका है। क्योंकि अर्दुआन की लोकप्रियता तुर्की की इकोनॉमी की तरह डूब रही है। मस्जिद बनाना सिर्फ एक नौटंकी है, जैसे भारत में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना। इससे न बेराजगारी दूर होगी और न ही स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होगी’
लेकिन इसके साथ ही कई लोगों ने जावेद अख्तर को ट्रोल भी कर डाला। एक यूजर नाज ने लिखा,
‘आप कौन हैं तुर्की सरकार को यह कहने वाले कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आपने और आपकी सरकार के बाबरी मस्जिद के साथ क्या किया’
यूजर जिशान ने कहा, ‘आपको याद है बाबरी मस्जिद भी ढहाई गई थी’
एक यूजर अमार ने लिखा, ‘मुस्लिम मामलों में नाक मत अड़ाओ, आप नास्तिक है अपने काम से काम रखो’
दाउद खान ने लिखा, ‘हाय रे सेक्यूलरिज्म, ये दर्द बाबरी के वक्त कहां था’
एक यूजर राजेश घडे ने लिखा, ‘जब मुस्लिम आक्रांताओं ने कई मंदिर गिरा दिए, लेकिन जब हिंदुओं ने राम के जन्मस्थान पर मंदिर बनाया तो रोने लगे, विक्टिम कार्ड खेलने लगे’
एक यूजर ने कहा कि ‘इजरायल ने जब एक मस्जिद को बार और इवेंट हॉल में बदल दिया तो आपको गुस्सा क्यों नहीं आया’
कुल मिलाकर हागिया सोफिया पर ट्वीट करना जावेद अख्तर को भारी पड़ गया। हालांकि उनकी बात सही थी।
बता दें कि तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दुआन ने हाल ही में इस्तांबुल के सबसे लोकप्रिय हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में बदलने का फैसला लिया है। अब तक यह इमारत वहां सेक्यूलरिज्म का प्रतीक मानी जाती थी। लेकिन इस फैसले के बाद अब तुर्की को कट्टर इस्लामवाद की तरफ बढ़ते देखा जा रहा है।