कर्नाटक में भले ही 75 वर्षीय बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई हो लेकिन अभी भी उनकी बहुमत साबित करने की राह कांटों से भरी हुई है। आइए जानते है कि क्या है येदियुरप्पा की मुश्किलें और कैसे वह इनका सामना करेंगे, जानिए इस मुद्दे पर खास जानकारी और वो 5 बातें जिनसे भाजपा को झटका लग सकता है...
सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट करना : येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक नहीं लगाकर भले ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी हो पर इस मामले पर उसकी पूरी नजर है। आज ही कर्नाटक की कमान संभालने वाले येदियुरप्पा को हर हाल में शीर्ष अदालत को संतुष्ट करना होगा। उसने कल सुबह 10 बजे तक येदियुरप्पा से विधायकों की सूची मांगी है। साथ ही राज्यपाल को उनके द्वारा सरकार बनाने का दावा करने वाला पत्र भी सौंपना होगा।
कांग्रेस और जद एस के विधायकों में सेंध : येदियुरप्पा दावा कर रहे हैं कि वह सदन में अपना बहुमत साबित कर देंगे। उनके पास 104 विधायक है लेकिन उन्हें फिलहाल सात और विधायकों का समर्थन चाहिए। बताया जा रहा है कि कांग्रेस और जदएस में कुछ विधायक उनके संपर्क में है और सदन में यह विधायक उनका ही साथ देंगे। हालांकि दोनों पार्टियां भी अपने विधायकों को लामबंद करने का भरपूर प्रयास कर रही है।
अपने विधायकों को रोकना : जिस प्रकार भाजपा विपक्षी विधायकों पर डोरे डाल रही है उसी तर्ज पर कांग्रेस और जदएस की नजर भी भाजपा विधायकों पर है। उन्हें अपने विधायकों को साधना होगा। इस स्थिति में ईश्वरप्पा जैसे कई दिग्गज नेताओं को उन्हें मनाना होगा।
मंत्रिमंडल का गठन : येदियुरप्पा सरकार के लिए मंत्रिमंडल का गठन भी बड़ा चुनौतीपूर्ण रहेगा। उन्हें सरकार को समर्थन दे रहे विधायकों को तो खुश करना ही होगा साथ ही पार्टी के टिकट पर चुने गए नेताओं को भी नाराज करने से बचना होगा। इस स्थिति में सत्ता पक्ष से जुड़े सभी विधायकों की उम्मीदें आसमान पर होगी और उन्हें खुश करना आसान नहीं है।
जुबान पर लगाम : येदियुरप्पा बेहद आक्रामक नेता माने जाते हैं। वे बेहद जिद्दी किस्म के नेता है और अपनी बात को हर हाल में मनवाना चाहते हैं। इस मुश्किल समय में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी जुबान पर लगाम लगाना होगी। उनकी जरा सी गलती से बनता खेल बिगड़ सकता है। येदियुरप्पा का पिछला शासनकाल अपने काम से ज्यादा विवादों के कारण सुर्खियों में रहा था। तीन साल बाद खनन घोटाले में फंसने के बाद येदियुरप्पा की सत्ता चली गई थी।