Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

उम्मीदों का ऐतिहासिक करतारपुर गलियारा

हमें फॉलो करें उम्मीदों का ऐतिहासिक करतारपुर गलियारा
webdunia

अनिल जैन

, बुधवार, 13 नवंबर 2019 (12:31 IST)
ठीक 30 साल पहले 9 नवंबर 1989 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बांटने वाली बर्लिन की दीवार गिराने की शुरुआत हुई थी। ठीक 30 साल बाद 9 नवंबर 2019 को ही पाकिस्तान और भारत के बीच बना करतारपुर गलियारा भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। दुनिया के 2 महाद्वीपों में घटीं इन 2 ऐतिहासिक घटनाओं के बीच अंतर सिर्फ 30 साल का ही नहीं है बल्कि और भी कई सारे फर्क हैं।
 
मगर सबसे मोटा फर्क यह है कि 30 साल पहले की घटना से उन 2 देशों के फिर से एक होने की शुरुआत हुई थी जिनके बाशिंदे 28 सालों से विभाजन का दंश झेल रहे थे। बर्लिन की दीवार ढहने से जो हुआ था, वैसा करतारपुर गलियारा खुलने से वैसा कुछ नहीं होने जा रहा है। इस गलियारे से सिर्फ भारत के सिख श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित अपने सबसे बड़े आस्था स्थल पर मत्था टेकने जा सकेंगे, इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। इसके बावजूद इस घटना के ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
 
दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच रंजिश उतनी ही पुरानी है जितना पुराना भारत का विभाजन है। उस विभाजन से अस्तित्व में आया पाकिस्तान है और उतना ही पुराना है दोनों देशों के बीच दोस्ती का रिश्ता बनाने की कोशिशों का सिलसिला।
 
हालांकि ऐसी कोशिशों को पलीता लगाने वाले तत्वों की कमी भी दोनों तरफ नहीं है। ऐसे तत्व दोनों देशों के सत्ता प्रतिष्ठान में भी हैं, दोनों तरफ की सेनाओं में भी हैं और दोनों तरफ राजनीतिक स्तर पर गुमराह किए कुछ आम लोग भी हैं।
webdunia
बहरहाल, गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मौके पर करतारपुर साहिब गलियारे को खोलने की पाकिस्तान की पहलकदमी भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए बहुत बड़ी राहत है। इस फैसले से भारत के सिख श्रद्धालु तो गद्-गद् हैं ही, साथ ही दोनों देशों के वे तमाम लोग भी खुश हैं, जो चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के तनावभरे रिश्ते खत्म हों, सीमाओं के बंधन शिथिल हों और लोगों की आवाजाही बढ़े।
 
करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र आस्था केंद्रों में शुमार होता है। गुरु नानक देव ने अपने जीवन के 18 वर्ष यहीं बिताए थे और यहीं पर उनका देहावसान हुआ था। उनकी पवित्र स्मृति में यहां पटियाला के राजा भूपिंदरसिंह की दी हुई दान की राशि से गुरुद्वारा बनाया गया था।
ALSO READ: क्या है करतारपुर कॉरिडोर
यह स्थान पंजाब के गुरदासपुर जिले में भारतीय सीमा से करीब 4 किलोमीटर दूर पाकिस्तान वाले पंजाब के नारोवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। दोनों देशों के बीच बेबनाव के चलते इतनी-सी दूरी के बावजूद भारतीय सिखों को दूरबीन से अपने इस आस्था स्थल के दर्शन करके संतोष करना पड़ता था।
 
महज 1 साल पहले दोनों देशों में बनी सहमति के मुताबिक भारत सरकार ने गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक गलियारे का निर्माण किया और सरहद से करतारपुर साहिब तक गलियारे के निर्माण का जिम्मा पाकिस्तान सरकार ने उठाया। दोनों ही तरफ निर्माण कार्य तेजी से हुआ और महज 10 महीने के भीतर गलियारा बनकर तैयार हो गया- आस्था का और रिश्तों का गलियारा।
 
इस गलियारे का बनना और श्रद्धालुओं के लिए उसका खुलना बताता है कि रिश्तों के बुरे दौर में भी सद्भाव बनाने वाले कुछ कदमों के जरिए तनाव का माहौल कुछ हल्का किया जा सकता है। हालांकि दोनों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए पिछले वर्षों में कई प्रयास हुए लेकिन कोई भी सिरे नहीं चढ़ पाया। जब भी कोई बड़ी पहल हुई, पाकिस्तान की धरती पर पलने वाले आतंकवादी गुटों ने किसी न किसी वारदात के जरिए उस पहल को बेअसर करने का काम किया। उधर पाकिस्तानी हुकूमत भी ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकी जिससे यह लगे कि वह आतंकवादियों पर नकेल कसने के प्रति गंभीर है।
जिस तरह भारत की ओर से रिश्तों में सुधार के लिए की गईं कोशिशों पर अक्सर पाकिस्तान में पलने वाले आतंकवादियों, वहां के खुदगर्ज सैन्य अधिकारियों और कट्टरपंथी तत्वों ने पानी फेरने और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने का काम किया, उसी तरह यही काम हमारी तरफ से भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान हो रहा है।
 
हमारे यहां यह काम सरकार के स्तर पर भी हो रहा है और उससे इतर सरकार तथा सत्तारूढ़ दल के समर्थक कुछ पूर्व सैन्य अधिकारी और मीडिया के एक बड़ा हिस्सा इसमें भी बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहा है। पिछले कुछ महीनों के दौरान तो जितने भी चुनाव हुए, सभी में खुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने सबसे बड़ा मुद्दा ही पाकिस्तान को बनाया और उनके सुर में सुर मिलाते हुए टेलीविजन चैनलों ने पूरे देश में युद्धोन्माद पैदा किया।
webdunia
दरअसल, दोनों देशों के बीच में झगड़े की सबसे बड़ी जड़ है कश्मीर। भारत विभाजन के शुरुआती दौर में कश्मीर के एक हिस्से पर धोखे से कब्जा कर चुका पाकिस्तान पूरे कश्मीर को अपना स्वाभाविक हिस्सा मानता है, हालांकि उसकी इस मान्यता और दावे का उसके पास कोई पुख्ता तार्किक और नैतिक आधार नहीं है। लेकिन इसके बावजूद वह कश्मीर के अलगाववादियों को 'कश्मीर की आजादी' के नाम पर हर तरह से मदद करता है। इसी सिलसिले में वह भारत के खिलाफ अपने यहां के आतंकवादी संगठनों को पालने-पोसने का काम भी करता है। उसकी यही सारी हरकतें दोनों देशों के रिश्तों में खटास पैदा करती हैं।
 
चुनावों के दौरान जैसे हमारे यहां 'पाकिस्तान' का इस्तेमाल मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए होता है, उसी तरह पाकिस्तान की राजनीतिक जमातें भी अपने यहां चुनाव के वक्त भारत के खिलाफ जहरबुझे बयानों के जरिए भारत विरोधी माहौल बनाती हैं। जिस दौरान करतारपुर गलियारे की तैयारियों की खबरें आ रही थीं, उस दौरान भी अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने को लेकर पाकिस्तान में युद्धोन्माद फैलाया जा रहा था। खुद प्रधानमंत्री इमरान खान भी और उनके मंत्री तथा सैन्य अधिकारी भी युद्ध की भाषा बोल रहे थे। उसकी प्रतिक्रिया में भारत की ओर से भी राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व वैसी ही गरमी दिखा रहा था।
 
बहरहाल, दोनों देशों के बीच तनाव के चलते औपचारिक संवाद न होते हुए भी दोनों देशों ने करतारपुर साहिब संबंधी प्रस्ताव को आगे बढ़ाया और पाकिस्तान ने इस पर सकारात्मक फैसला किया, जो यह बताता है कि रिश्तों में सुधार की इच्छा दोनों तरफ कायम है।
 
पाकिस्तान ने तो अपने हिस्से वाले करतारपुर गलियारे के शिलान्यास कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी न्योता दिया था, लेकिन वे नहीं गईं या उन्हें नहीं जाने दिया गया। अगर वे जातीं तो एक सकारात्मक संदेश भारत की ओर से जाता और दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ आंशिक रूप से ही सही, मगर पिघलती जरूर।
 
सुषमा स्वराज उस समय पूरी तरह स्वस्थ तो नहीं थीं, फिर भी सक्रिय थीं और वे जा सकती थीं। लेकिन उन्होंने न जा पाने की वजह बताई थी, जो बेहद पिलपिली थी। उन्होंने कहा था कि तेलंगाना में चुनाव प्रचार सहित पहले निर्धारित अन्य कार्यक्रमों में अपनी व्यस्तता के चलते वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पा रही हैं।
 
खैर, दोनों तरफ करतापुर गलियारे के उद्घाटन के मौके पर दोनों देशों की ओर से सकारात्मक बातें ही कही गई हैं। भारत की ओर जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और करतारपुर गलियारे के पाकिस्तानी हिस्से के निर्माण को मूर्तरूप देने वाले कामगारों को बधाई और धन्यवाद दिया, वहीं इमरान खान ने भी बातचीत की अपनी पूर्व में ठुकराई गई पेशकश का जिक्र करते हुए एक बार फिर बातचीत की इच्छा जाहिर की है। हालांकि उन्होंने आतंकवादियों पर लगाम कसने जैसी कोई बात नहीं की लेकिन कहा कि दोनों देशों के बीच कश्मीर समेत जो भी मसले हैं, उन्हें बातचीत के जरिए ही हल किया जा सकता है।
 
जो भी हो, इस समय तो करतारपुर गलियारा खुलने और सिख श्रद्धालुओं की वहां आवाजाही शुरू होने से एक उम्मीद जागी है। अगर आने वाले समय में भी यह आवाजाही सामान्य रूप से जारी रहती है और पाकिस्तान की ओर से इस गलियारे का भारत के प्रति नकारात्मक या शरारतपूर्ण इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं होती है, जैसी कि आशंकाएं जताई जा रही हैं, तो निश्चित ही दोनों देशों के बीच भले ही किसी और शक्ल में ऐसे ही 'गलियारे' और भी बनते और खुलते रहेंगे।
 
फिलहाल तो शहरयार के शब्दों में यही कहा जा सकता है-
 
'सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का, 
यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का।'

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।) (फ़ाइल चित्र)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या ननचाकू से टेबल टेनिस खेलता यह शख्स ब्रूस ली है...जानिए सच...