जम्मू। किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ समझे जाने वाले पंचों-सरपंचों का कश्मीर में क्या हालत है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले 3 सालों में 19 पंचों-सरपंचों की हत्या के बाद प्रशासन ने सिर्फ 60 को ही सुरक्षा मुहैया करवाई है। पर शोर शराबे और बवाल के बाद प्रत्येक पंच-सरपंच को पहली बार 25 लाख का बीमा करवाया गया है। यह रकम सिर्फ आतंकी हमले में मौत होने पर ही मिलेगी।
पंचायत व निकाय प्रतिनिधियों को बीमा कवर देने का फैसला उस समय लिया गया जब आतंकियों ने कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी थी। इसके उपरांत पंचों व सरपंचों द्वारा सामूहिक त्यागपत्र की दी गई धमकी का नतीजा था कि प्रशासन बीमा कवर व सुरक्षा मुहैया करवाने को राजी हो गया।
पर मात्र 60 को मुहैया करवाई गई सुरक्षा किसी को भी संतुष्ट नहीं कर पाई। प्रदेश में पंचों व सरपंचों के कुल 37882 पद हैं। इनमें 4290 सरपंच व 33592 पंच के हैं। दिसम्बर 2018 में आखिरी बार चुनाव हुए तो 12209 पदों पर आतंकी खतरे के कारण मतदान ही नहीं हो पाया। अब जबकि आतंकी 2018 के बाद 19 पंचों-सरंपचों को मौत के घाट उतार चुके हैं, उनके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग पर पुलिस का कहना था कि इतने लोगों को सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती।
प्रदेश में 30 सालों के आतंकवाद के इतिहास में एक हजार से अधिक राजनीतिज्ञों की हत्याएं आतंकी कर चुके हैं। इनमें से अधिकतर के पास सुरक्षा भी थी। फिर भी आतंकी उन्हें मारने में कामयाब रहे थे। ऐसे में सुरक्षा क्या उनकी जान बचा पाएगी जो इसकी मांग कर रहे हैं, के प्रति एक सरपंच का कहना था कि फिर भी बचने की आस बनी रहती है।
इतना जरूर था कि इस अरसे में अभी तक करीब 2000 पंच-सरपंच आतंकी धमकियों के कारण त्यागपत्र भी दे चुके हैं। उन्होंने अपने त्यागपत्रों की घोषणा अखबारों में इश्तहार के माध्यम से की थी। दरअसल दूर-दराज के आतंकवादग्रस्त इलाकों में रहने वाले राजनीतिज्ञों को अक्सर कश्मीर में पिछले 30 सालों में झुकना ही पड़ा है।