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जम्मू। कश्मीर के विस्थापितों की पौ बारह हो गई है क्योंकि पलायन कर राज्य के अन्य हिस्सों के साथ-साथ देश के अन्य भागों में जाकर रहने वालों पर राज्यपाल शासन ने सौगातों की बौछार कर दी है। उनके लिए आरक्षण की झोली खोल दी गई है।
कश्मीर में आतंकवाद के चलते वहां एलओसी से सटे इलाकों से पलायन कर जम्मू, देश में अन्य हिस्सों में बसे कश्मीरी विस्थापितों को 23 सालों के बाद फिर सरकारी नौकिरयों, प्रोफेशनल कॉलेजों के दाखिलों में एलओसी, पिछड़े इलाकों का निवासी होने का लाभ मिलेगा।
इससे पहले राज्यपाल प्रशासन ने आईबी पर पाकिस्तान की गोलाबारी का सामना करने वाले लोगों को भी एलओसी पर बसे लोगों की तर्ज पर यह आरक्षण देने की मांग स्वीकार की थी। लेकिन सरकार के आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि आरक्षण का लाभ आईबी के सिर्फ उन परिवारों को ही मिलेगा जो पिछले पंद्रह सालों से आईबी पर ही रह रहे हों। वहां से पलायन कर अन्य जगहों पर बस गए परिवारों को इस आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
वर्ष 1990 में कश्मीर में आतंकवाद के चलते बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था। सुरक्षा कारणों से पलायन करने वालों में कश्मीरी पंडितों के साथ कई सिख, गैर कश्मीरी हिन्दू व मुस्लिम परिवार भी शामिल थे। इनमें खासे ऐसे परिवार भी थे जो पिछड़े क्षेत्रों व नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में रहते थे।
वर्ष 1996 के बाद इन परिवारों को नियंत्रण रेखा, पिछड़े इलाकों के निवासी होने का आरक्षण मिलना बंद हो गया था। इसके बाद विशेष तौर पर कश्मीरी पंडित यह मुद्दा जोरशोर से उठा रहे थे। राज्य में राष्ट्रपति शासन के चलते उनकी इस मांग को मान लिया गया।
राज्यपाल प्रशासन ने एलओसी की तर्ज पर आईबी के निवासियों को भी तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने के साथ सुरक्षा कारणों से पलायन कर आए कश्मीर के दूरदराज इलाकों के कई परिवारों को मिलने वाले रेजीडेंट ऑफ बैकवर्ड एरिया, नियंत्रण रेखा पर बसे होने का यह लाभ बहाल कर दिया।
राज्य सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी कर स्पष्ट किया है कि ऐसे कश्मीरी पंडित विस्थापित चाहे देश में कहीं भी बसे हों, उन्हें सरकारी नौकरियों, प्रोफेशनल कॉलेजों आदि में 3 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा। अलबत्ता इस आरक् षण का लाभ लेने के लिए विस्थापितों का रिलीफ कमिश्नर कार्यालय के साथ पंजीकरण होना जरूरी है।