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इस बार बदला-बदला सा है केदारनाथ यात्रा का नजारा

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देहरादून , रविवार, 29 अप्रैल 2018 (11:27 IST)
देहरादून। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में करीब 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित विश्वप्रसिद्ध केदारनाथ धाम आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को इस बार बाबा के दर का रास्ता बदला बदला सा मिलेगा और कदम कदम पर बेहतर सुविधाओं के साथ ही पैदल मार्ग के प्रारंभिक बिंदु से ही उन्हें भोले बाबा के धाम का दीदार होने लगेगा।
 
पिछले वर्ष की भांति इस बार भी केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने वाले दिन केदारनाथ में चल रही पुनर्निर्माण तथा उसे भव्य और दिव्य रूप देने की परियोजनाओं के कारण धाम के स्वरूप से लेकर व्यवस्थाओं तक सब अलग नजर आएगा।
 
उनत्तीस अप्रैल को सुबह सवा छह बजे श्रद्धालुओं के लिए केदारनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे और इस बार यात्रा पर आने वाले लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले साल की घोषणा के अनुरूप विभिन्न योजनाओं के अमल में आने से हुए परिवर्तन का एहसास होने लगेगा।
 
हाल में प्रधानमंत्री मोदी को केदारनाथ में किये जा रहे पुनर्निर्माण कार्यो की प्रगति की जानकारी देने वाले प्रदेश के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि मंदिर के चबूतरे का क्षेत्रफल 1500 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 4125 वर्ग मीटर कर दिया गया है तथा वर्ष 2013 में आई प्राकृतिक आपदा में मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के संगम स्थल से मंदिर परिसर तक 270 मीटर की दूरी पर इकट्ठा हो गए 12 फीट मलबे को खुदाई कर हटा दिया गया है।
 
सिंह ने बताया कि ऐसी व्यवस्था की गई है कि मार्ग के प्रारंभिक बिंदु से मंदिर का दृश्य अबाधित रूप से दिखाई दे।
 
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री की अपेक्षा के अनुरूप सरस्वती और मंदाकिनी नदियों के संगम से केदारनाथ मंदिर के बीच मुख्य दृश्य तक बीच में कोई भी दुकान नहीं लगायी जा सकेगी जिससे तीर्थयात्रियों को मंदिर का दृश्य दूर से साफ दिखाई दे।
 
उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी पर 470 मीटर और मंदाकिनी नदी पर 380 मीटर लंबाई में सुरक्षा दीवार बनाई जा रही है जबकि गरुड़चट्टी से केदारनाथ धाम तक का साढ़े तीन किलोमीटर पैदल मार्ग का पुनर्निर्माण कार्य पूरा हो गया है। मंदाकिनी के दाहिने तट से 200 मीटर ऊंचाई पर योग ध्यान गुफा का निर्माण कराया जा रहा है।
 
सिंह ने बताया कि गौरीकुंड से लिंचैली होते हुए मार्ग का चौड़ीकरण और सुधारीकरण कार्य 70 प्रतिशत तक पूरा कर लिया गया है जबकि मंदिर के पूर्वी भाग में हिमस्खलन और भूस्खलन से बचाव हेतु 300 मीटर में बैरियर और ड्रेनेज निर्माण कार्य हो गया है।
 
मुख्य सचिव ने बताया कि केदारनाथ पुनर्निर्माण के लिए केदारनाथ उत्थान चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया गया है​ जिसमें अब तक लगभग 10 करोड़ रुपए सीएसआर मद से जमा हो चुके हैं।
 
उन्होंने बताया कि श्री केदार धाम में आने वाले तीर्थ यात्रियों की जानकारी के लिए मोबाइल एप बनाया गया है जिससे भारत की सभी भाषाओं में तीर्थ के महत्व की जानकारी मिलेगी।
 
उन्होंने बताया कि पायलट के रूप में 28 अप्रैल की शाम से एक हफ्ते तक लेजर शो का आयोजन मंदिर परिसर में किया जाएगा। गढवाल मंडल विकास निगम के पुराने गेस्ट हाउस को ठीक कराकर 10 बेड का अस्पताल बनाया गया है।
 
रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि इस वर्ष केदारनाथ यात्रा के दौरान यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर रामबाड़ा से केदारनाथ तक पूर्व में निर्मित पैदल मार्ग को लगभग तीन मीटर से बढाकर 5;20 मी चौड़ा किया गया है ताकि उक्त मार्ग पर आवाजाही में उन्हें कोई असुविधा न हो और वहां घोड़े-खच्चरों को भी चलने के लिए अतिरिक्त जगह मिल जाए।
 
इस बार की केदारनाथ यात्रा का एक अन्य आकर्षण स्थानीय उत्पादों से निर्मित खाद्य सामग्री भी रहेगी। जिलाधिकारी ने बताया कि गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर मंडुआ, चौलाई आदि स्थानीय उत्पादों से निर्मित भोजन तथा अन्य खाद्य वस्तुएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
 
घिल्डियाल ने कहा, 'इस वर्ष यात्रा हेतु यह प्रयास किया जा रहा है कि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां के स्थानीय उत्पादों से तैयार भोजन ग्रहण करें एवं स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार किया सामान खरीदें जिससे स्थानीय खानपान और संस्कृति को भी बाहर पहचान मिल सकें।' 
 
केदारनाथ धाम में इस बार एक हाट बाजार भी स्थापित किया जा रहा है जहां श्रद्धालु पहाड़ी स्थानीय उत्पादों से बने सामान तथा अन्य वस्तुएं क्रय कर सकेंगे। हाट बाजार के निर्माण से यात्रियों को स्थानीय सामग्री एक ही जगह पर उचित दामों में मिल सकेगी।
 
गौरीकुंड से केदारनाथ के बीच 50 अतिरिक्त दुकानें स्थापित की जा रही हैं जिससे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलने के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सके।
 
पांच साल पहले आयी प्राकृतिक आपदा जैसी घटनाओं से सबक लेते हुए इस बार जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा स्थापित लोकल वायरलेस इंटरनेट नेटवर्क के माध्यम से यात्रा पड़ावों पर वायरलेस पब्लिक एड्रेस सिस्टम स्थापित किया जा रहा है जिससे जरूरत पड़ने पर चेतावनियों को तीर्थयात्रियों तक पहुंचा कर उन्हें सावधान किया जा सके।
 
सभी घोड़ें-खच्चरों के संचालन के लिए एमआइएफएआरई कार्ड दिया जाएगा और पशुओं पर आरएफआइडी टैग लगाया जाएगा ताकि पैदल मार्ग पर चल रहे घोड़ें खच्चरों की लोकेशन का पता लगाया जा सके तथा यह भी मालूम हो जाए कि विभिन्न पड़ावों के बीच उनकी कितनी संख्या है।
 
जीएमवीएन के अतिथिगृहों में श्रद्धालुओं के लिए उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति से रूबरू कराने के लिए पांडव नृत्य जैसे आयोजन किए जाने की भी व्यवस्था की गई है। (भाषा) 

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