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इंदिराजी का गाय-बछड़ा...

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, सोमवार, 29 मई 2017 (18:16 IST)
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कटने वाला पशु गाय थी या बछड़ा (जैसा कि कहा जा रहा है)। फर्क तो इससे पड़ता है कि उसको काटने वाले कांग्रेसी थे। फर्क इसलिए भी पड़ता है कि गाय और बछड़ा किसी समय कांग्रेस की पहचान था यानी पार्टी का चुनाव चिह्न था। 
 
जिन लोगों को 70-80 के दशक के चुनावों का ध्यान है, उन्हें गाय-बछड़ा भी याद होगा, जब चुनाव के समय में शहर के गलियों से लेकर ठेठ गांव तक एक ही आवाज सुनाई देती थी- 'इंदिरा जी का गाय-बछड़ा, भूल न जाना गाय-बछड़ा और मोहर लगाना गाय-बछड़ा'। उस समय बड़ों से लेकर बच्चों तक गाय-बछड़े वाले बिल्ले लगाने का आकर्षण हुआ करता था। जिसे यह बिल्ला मिल जाता था, वह खुद को दूसरों से अलग और महत्वपूर्ण समझता था। 
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दुर्भाग्य से कुछ कांग्रेसियों के 'हाथ' ही अपनी उस पहचान पर छुरी चला रहे हैं, जिसकी किसी जमाने में देश में तूती बोला करती थी। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के फैसले का विरोध करने का हक कांग्रेस को है, करना भी चाहिए, लेकिन कम से कम विरोध ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि सार्वजनिक रूप से एक पशु को निर्ममता से कत्ल कर दिया जाए। वह भी उस पशु का जो कि सीधे-सीधे देश के बहुसंख्यक वर्ग की आस्था से जुड़ा हुआ है।
 
केरल के कन्नूर में हुई इस घटना की आज पूरे देश में चर्चा है और इसकी खूब आलोचना भी हो रही है। शायद कांग्रेस के तेजी से घटते जनाधार का एक कारण यह भी है क्योंकि जिस कांग्रेस ने समय के साथ इंदिराजी को ही बिसरा दिया, वह भला उसे गाय-बछड़ा कैसे याद रहेगा?

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