जम्मू। इस बार ज्येष्ठ अष्टमी पर 30 मई को कश्मीर में गंदरबल स्थित तुलमुल्ला स्थित क्षीर भवानी के मंदिर में शायद ही कश्मीरी पंडितों को पूजा-अर्चना की अनुमति मिल पाए क्योंकि फिलहाल कश्मीर घाटी के अधिकतर जिले कोरोना के कारण रेड जोन में हैं।
इसी प्रकार लॉकडाउन के कारण धार्मिक गतिविधियों पर लगी रोक के चलते जम्मू में भवानी नगर स्थित माता क्षीर भवानी मंदिर में जाकर कश्मीरी पंडित पूजा-अर्चना नहीं कर पाएंगे। इसके बजाय इस बार उन्हें अपने घरों में ही रहकर माता क्षीर भवानी की आराधना करनी होगी। इस दिन मेला भी नहीं लगेगा।
फिलहाल तुलमुल्ला स्थित मंदिर में पूजा को लेकर प्रशासन द्वारा चुप्पी साधी गई है पर जम्मू के मंदिर की पूजा अर्चना के प्रति माता राघेन्या के स्थापना दिवस पर अर्धरात्रि महाराघेन्य सेवा संस्थान (क्षीर भवानी मंदिर) ने फैसला किया है कि उसके तीन सदस्य ही मंदिर में दीप जलाकर पूजा-अर्चना करेंगे। सिर्फ यही लोग मंदिर के जलकुंड में दूध, खीर व फूल अर्पित करेंगे।
याद रहे मध्य कश्मीर के गंदरबल जिले के तुलमुल्ला में स्थित माता क्षीर भवानी मंदिर की तर्ज पर जम्मू में भी माता का मंदिर बनाया गया है। आतंकवाद के दौरान 1990 में कश्मीरी पंडितों की बड़ी आबादी कश्मीर से पलायन कर जम्मू में आ गई थी। इन लोगों को घाटी के तुलमुल्ला स्थित माता क्षीर भवानी मंदिर (राघेन्या माता मंदिर) से विमुख होना पड़ा था। जम्मू आए इन पंडितों ने तब तुलमुल्ला में स्थित ऐतिहासिक मंदिर की तर्ज पर ही जम्मू के भवानी नगर में माता क्षीर भवानी का मंदिर बनाया। तब से यहां भी कश्मीर की तरह हर साल ज्येष्ठ अष्टमी पर मेला लगता है। हर वर्ष इसमें हजारों कश्मीरी पंडित भाग लेते हैं, लेकिन इस बार यह मेला नहीं लगेगा।
कश्मीरी पंडितों का मानना है कि माता राघेन्या को श्रीराम के भक्त हनुमान जी श्रीलंका से कश्मीर के तुलमुल्ला में आए थे। तुलमुला में ज्येष्ठ अष्टमी पर ही माता स्थापित हुई थीं। तब लोगों ने खुशी में खीर बनाई व माता को भोग लगाया।
जगटी टेनमेंट कमेटी व सोन कश्मीर के प्रधान शादीलाल पंडिता का कहना है कि कश्मीरी पंडित तुलमुल्ला मंदिर में ही माता की पूजा करते आए हैं। हर साल खीर बनाकर माता को भोग लगाया जाता है। इसलिए इनको माता क्षीर भवानी भी कहा जाता है। ज्येष्ठ अष्टमी पर कश्मीरी पंडित मंदिर परिसर में बने कुंड में खीर, दूध व फूल का अर्पित करते हैं। दीप जलाकर पूजा करते हैं। पर इस बार वे इससे वंचित ही रहेंगे।
क्षीर भवानी की कथा : क्षीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुलमुल्ला गांव में स्थित है। ये मंदिर मां क्षीर भवानी को समर्पित है। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं। ये मंदिर, कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है।
महाराग्य देवी, रग्न्या देवी, रजनी देवी, रग्न्या भगवती इस मंदिर के अन्य प्रचलित नाम हैं। इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरिसिंह द्वारा पूरा किया गया।
इस मंदिर की एक ख़ास बात ये है कि यहां एक षट्कोणीय झरना है, जिसे यहां के मूल निवासी देवी का प्रतीक मानते हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख किंवदंती ये है कि सतयुग में भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के समय इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा के स्थान के रूप में किया था। वनवास की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान राम द्वारा हनुमान को एक दिन अचानक ये आदेश मिला कि वो देवी की मूर्ति को स्थापित करें। हनुमान ने प्राप्त आदेश का पालन किया और देवी की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया, तब से लेकर आज तक ये मूर्ति इसी स्थान पर है।
इस मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है यहां क्षीर अर्थात ‘खीर’ का एक विशेष महत्त्व है और इसका इस्तेमाल यहां प्रमुख प्रसाद के रूप में किया जाता है। क्षीर भवानी मंदिर के संदर्भ में एक दिलचस्प बात यह है कि यहां के स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि अगर यहां मौजूद झरने के पानी का रंग बदलकर सफ़ेद से काला हो जाए तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है।
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ (मई-जून) के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। यहां मई के महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस शुभ दिन पर देवी के कुंड का पानी बदला जाता है। ज्येष्ठ अष्टमी और शुक्ल पक्ष अष्टमी इस मंदिर में मनाए जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहार हैं। (फाइल फोटो)