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चीनी करतूत के बाद लद्दाख का मोर्चा सियाचिन से भी महंगा साबित होगा

हमें फॉलो करें चीनी करतूत के बाद लद्दाख का मोर्चा सियाचिन से भी महंगा साबित होगा

सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 7 जुलाई 2020 (19:23 IST)
जम्मू। लद्दाख का मोर्चा अब सियाचिन से भी महंगा साबित होगा, क्योंकि सर्दियों में भी टिके रहने की तैयारी हो रही है। यह तैयारी ठीक सियाचिन हिमखंड की ही तरह की है, जहां 36 सालों से भारतीय फौज पाक सेना के नापाक इरादों को दबाने की खातिर तैनात है। सियाचिन हिमखंड पर प्रतिदिन सेना व वायुसेना करीब 10 करोड़ की राशि खर्च करती है। अब ठीक इसी प्रकार का नया आर्थिक बोझ लद्दाख के मोर्चे पर भी उठाना पड़ेगा क्योंकि चीन के बढ़ते कदमों को रोकना जरूरी है। 
 
रक्षा सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है कि लेह स्थित 14 कोर ने वहां दोगुने सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पिछले महीने माल-असबाब जुटाना शुरू कर दिया था। ठंड के लिए सामग्री जुटाने का काम जून में शुरू हो जाता है और 4 महीनों में यानी ठंड की दस्तक होने से ठीक पहले सितंबर तक पूरा होता है।
 
पेट्रोल, केरोसिन, अनाज और दालें ट्रकों से लेह पहुंचाई जाती हैं ताकि ठंड में जब कश्मीर और लद्दाख जाने वाले प्रमुख दर्रे और रास्ते बर्फबारी की वजह से बंद हो जाते हैं तब इनका इस्तेमाल किया जा सके। एक सैनिक के लिए इतनी ऊंचाई पर ठंड के दौरान करीब 800 किलो सामग्री की जरूरत पड़ती है।
 
ताजे फल और सब्जियां वायुसेना के बड़े मालवाहक विमानों के जरिए चंडीगढ़ से यहां पहुंचाई जाती हैं। भोजन के अलावा वहां तैनात सैनिकों को ऊंचाई की क्रूर और जानलेवा ठंड से बचाने की भी जरूरत होती है। वहां तापमान शून्य से 40 से 50 डिग्री तक नीचे चला जाता है। पेंगोंग झील की तरह सिंधु, श्योक जैसी नदियां भी जम जाती हैं। पाइपों में भी पानी जम जाता है और पानी गर्म करने से लेकर खाना बनाने तक हर काम के लिए केरोसिन की जरूरत पड़ती है। 
 
इसी के मद्देनजर पिछले महीने चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना ने आर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) से अत्यंत ठंडे मौसम (ईसीसी) में पहने जाने वाले कपड़ों की डिलिवरी तेज करने को कहा है। सेना चाहती है कि ओएफबी कानपुर में बने तीन परतों वाले ईसीसी 80 हजार जोड़ी कपड़ों की डिलिवरी जल्द से जल्द करे। हरेक वस्त्र शून्य से 50 डिग्री नीचे के तापमान और 40 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं के बीच सैनिकों को बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये इस बात का संकेत है कि सेना मानकर चल रही है कि लद्दाख सेक्टर में तैनाती लंबे समय तक रह सकती है।
हालांकि एलएसी के नजदीक टकराव के बिंदुओं पर तनाव घटाने और सैनिक हटाने का फैसला हुआ है, लेकिन किसी भी हालत में यह प्रक्रिया महीनों तक चलना तय है क्योंकि ठंड तक तो सैनिक वहां तैनात ही रहेंगे।
 
सेना का कहना है कि सप्लाई लाइन सीमित होने पर भी उसे ठंड का मौसम भी गुजार लेने की उम्मीद है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बीते वर्षों में हमने लद्दाख में बहुत सारी सुविधाएं तैयार कर ली हैं। इसलिए हमें यहां बस काम शुरू करने की जरूरत है। हमारे सैनिक बहुत साहसी और किसी भी माहौल में ढल जाने वाले हैं।
 
आपको बता दें कि भारत को छोड़कर किसी भी देश की सेना इतनी ऊंचाई पर तैनात नहीं है। ये सब ज्यादातर 1999 के कारगिल युद्ध के बाद से शुरू हुआ जब कारगिल में भारतीय सेना की ओर से खाली छोड़ी गई चौकियों पर पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर कब्जा कर लिया। तब से सेना ने 150 किमी लंबी एलओसी पर सर्दी में भी निगरानी शुरू कर दी। एलओसी पर 12 हजार से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर 200 चौकियां स्थापित की गई हैं, जबकि 1984 से ही सियाचिन में तैनाती की जा चुकी है।
सेना ने जून में लेह में तैनात 14 कोर के तहत तैनात मौजूदा दो डिविजनों के अलावा दो और इन्फेंट्री डिविजन (करीब 30 हजार सैनिक) लद्दाख सेक्टर में सुरक्षा बढ़ाने के लिहाज से तैनात की हैं। इनमें से एक डिविजन दूसरे चीन यानी पाकिस्तान से भी मुकाबले को तैनात है। एलएसी को बदलने की चीनी सेना की सबसे बड़ी कोशिश से निपटने में सेना की तीन से ज्यादा तैनात डिविजनों को एयरफोर्स के हथियारों से लैस अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों, एसयू-30-जेट और सी-17 हैवी लिफ्टर्स का साथ मिल रहा है।

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