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लाल बहादुर शास्त्री: एक शालीन प्रधानमंत्री, जिनकी मृत्यु का रहस्य आज भी बरकरार है

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, मंगलवार, 11 जनवरी 2022 (04:04 IST)
आज देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि है। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी को अचानक उनकी मौत हो गई। उस दिन से लेकर आज तक उनके निधन पर रहस्‍य बरकरार है।

उनकी मौत की मिस्‍ट्री पर कई किताबें प्रकाशि‍त हुईं, कई फि‍ल्‍में बनी, लेकिन आज तक यह पता नहीं चल सका कि उनका निधन किस परिस्‍थि‍ति में हुआ था। आइए जानते हैं उनके बारे में।

वह एक लोक‍प्र‍िय भारतीय राजनेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वे एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया, बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई।

2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के यहां उनका जन्‍म हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से नन्हे कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हे अठारह महीने का हुआ तब दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया था।

शास्त्री जी की परवरिश में उनके मौसा ने उसकी मां का काफी साथ दिया। ननिहाल में रहते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ (वर्तमान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में हुई।

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए। 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे। इस तरह कुल नौ साल वह जेल में रहे!

शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे। तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया। शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी। वहीं अपनी शादी में उन्होंने दहेज लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया।

1964 में जब वह प्रधानमंत्री बने, तब देश खाने की चीजें आयात करता था। उस वक्त देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था। 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा. तब के।हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की. इन्हीं हालात से उन्होंने हमें 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया।

शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें साल 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। उनके बेटे सुनील शास्त्री ने कहा था कि उनके पिता की बॉडी पर नीले निशान थे। साथ ही उनके शरीर पर कुछ कट भी थे। इन सारी अटकलों के बीच शास्‍त्रीजी की मौत आज भी एक अनसुलझी पहेली है।

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