जम्मू। सीजफायर के बावजूद एलओसी (LoC) पर गरजते पाक तोपखानों ने सीमावासियों को मजबूर किया है कि वे निजी बंकरों को तैयार करें। गोलाबारी से होने वाली लगातार मौतों के चलते अधिक से अधिक बंकरों की मांग भी बढ़ती जा रही है।
यह है तो हैरान करने वाली बात पर पूरी तरह से सच है कि पाकिस्तान से सटी 814 किमी लंबी एलओसी अर्थात लाइन ऑफ कंट्रोल से सटे गांवों में रहने वाले लाखों परिवारों को भोजन, सड़क, बिजली और पानी से अधिक जरूरत उन भूमिगत बंकरों की है, जिनमें छुपकर वे उस समय अपनी जानें बचाना चाहते हैं जब पाकिस्तानी सैनिक नागरिक ठिकानों को निशाना बना गोलों की बरसात करते हैं।
जानकारी के लिए 1999 में करगिल युद्ध के बाद से तो भूमिगत बंकर सीमांत नागरिकों के जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं।
उड़ी सेक्टर में गत शुक्रवार को पाकिस्तानी सेना द्वारा दागे गए गोलों की गूंज शांत होते ही स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए सामुदायिक बंकरों का निर्माण कार्य तेज हो गया है। यह बंकर गोलाबारी के समय लोगों की जान बचाने के लिए एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में काम आएंगे। अगले माह तक 38 बंकर लोगों को सौंपे जाएंगे। इसके साथ ही उड़ी सेक्टर में ग्रामीणों के लिए बंकरों की तादाद भी 58 हो जाएगी। प्रशासन ने उड़ी में 250 निजी बंकरों का एक प्रस्ताव भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा है।
दरअसल, पाक सेना की ओर से गोलाबारी के बाद एलओसी के इलाकों में घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले लोगों ने अब सरकार से अपने घरों पर व्यक्तिगत बंकर बनाए जाने की मांग की है। पाकिस्तान की तरफ से की जाने वाली भारी गोलाबारी की वजह से एलओसी के गांवों से लोगों का पलायन अब आम बात हो गई है।
अधिकारियों का कहना था कि पाक सैनिक कभी भी दोबारा जंग बंदी तोड़ सकते हैं, इसलिए हमने ग्रामीणों की किसी भी आपात स्थिति में मदद की एक कार्य योजना तैयार की है। इसके अलावा एलओसी के साथ सटी अग्रिम नागरिक बस्तियों में सामुदायिक बंकरों का निर्माण तेज किया गया है। जिले में हमारे पास पहले ही 20 सामुदायिक बंकर हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 44 नए बंकरों का मंजूर किया है।
पुंछ के जनगढ़ निवासी प्रशोतम कुमार ने कहा कि हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण मांग यह है कि अगर हमें एलओसी पर रहना है तो सरकार को सीमा पर बसे प्रत्येक घर में बंकर बनाना चाहिए। यह एलओसी पर रहने वाले लोगों की सबसे अहम मांग है। सीमा शरणार्थी समन्वय समिति के अध्यक्ष कुमार ने अपनी मांग से कई बार केंद्र सरकार को अवगत कराया और कहा कि हमें भोजन से ज्यादा बंकर की जरूरत है।
यह हमारे और हमारे परिवार के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट की तरह है। सीमावर्ती गांव कलसियां के सरपंच बहादुर चौधरी ने कहा कि अगर सभी निवासियों को उनके घरों पर बंकर मिलते हैं तो कोई भी एलओसी पर बसे गांवों को नहीं छोड़ेगा चाहे पाकिस्तान कितनी भारी गोलाबारी क्यों ना करें।
अधिकारियों का कहना था कि बारामुल्ला में अगले माह बंकर पूरी तरह से तैयार कर जनता को सौंप दिए जाएंगे। छह अन्य बंकरों के लिए भी निविदाएं जारी की गई हैं, लेकिन इनमें ठेकेदारों ने कोई रुचि नहीं ली है। यह सभी बंकर ऊंचे पहाड़ी इलाकों में बनाए जा रहे हैं। इन इलाकों में सड़क भी नहीं है। निर्माण सामग्री को पहुंचाना बहुत मुश्किल और महंगा है। हमने इन सभी दिक्कतों का संज्ञान लेते हुए उनके समाधान के लिए संबधित प्रशासन को आग्रह किया है।
किसान भी असमंजस में : इस महीने की 25 तारीख को भारत-पाक सीमा व एलओसी पर लागू सीजफायर यूं तो 17 साल पूरे करने जा रहा है पर हाल-ए-सीजफायर यह है कि सीमाओं पर पाक सेना द्वारा बार-बार सीजफायर का उल्लंघन किए जाने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
नतीजतन सीमावासियों की रातों की नींद और दिन का चैन फिर से छीनने लगा है। बढ़ती गोलाबारी के कारण वे चिंता में हैं कि तारबंदी के पार के खेतों में फसल बोएं या नहीं। हालांकि अप्रत्यक्ष तौर पर बीएसएफ और सेना उन्हें करने से मना करने लगी हैं।