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एलओसी के गांव खाली, तोपें तनीं...

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। एलओसी के दोनों ओर के सैकड़ों गांवों भारतीय तथा पाकिस्तानी सेनाओं द्वारा खाली करवाए जा चुके हैं। दोनों ओर से तोपखानों की तैनाती भी हो चुकी है। तीन दिन पहले भारतीय सेना ने 15 सालों के अरसे के बाद उड़ी सेक्टर में बकायदा बोफोर्स का इस्तेमाल भी कर डाला क्योंकि पाक सेना द्वारा की जाने वाली गोलों की बरसात थम नहीं रही थी।


कुछ लोग इस माहौल को जंग की तैयार कहते हैं तो जिन हजारों सीमावासियों का अपने घर बाहर त्यागने पड़े हैं उनके लिए जंग तो जारी है। उड़ी के कमालकोट का रहमत अली कहता थाः ‘कई दिनों से खुले मैदान में हैं। घरों पर कितने गोले गिरे हैं कोई नहीं जानता क्योंकि वहां लौट पाना मौत को आवाज देने की तरह है।’

हैरानगी की बात यह है कि तोपखानों का इस्तेमाल उस संघर्ष विराम के बावजूद हो रहा है जो 814 किमी लंबी एलओसी तथा 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बार्डर के साथ ही सियाचिन को बांटने वाली एजीपीएल पर भी 26 नवंबर 2003 से लागू है। यह बात अलग है कि यह संघर्ष विराम अब सिर्फ कागजों में ही है।

अगर आंकड़ों पर जाएं तो पाक सेना पिछले 6 सालों से प्रतिदिन दो बार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रही है। सीजफायर के उल्लंघन में बीसियों सैनिकों और नागरिकों की मौतें इस ओर हो चुकी हैं। जान-माल की क्षति दोनों ओर इसलिए है क्योंकि जब जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना की ओर से भी तोपखानों का मुंह खुलता है तो उस पार के सैनिक और असैनिक ठिकाने निशाने बन ही जाते हैं।

पिछले एक हफ्ते से हालात बहुत ही ज्यादा खराब माने जा सकते हैं। भारतीय सेना ने आप उड़ी समेत एलओसी से सटे उन बीसियों गांवों को खाली करवा लिया है जो पाक सेना की गोलाबारी की सीधी रेंज में हैं। और जो अप्रत्यक्ष रेंज में हैं वहां कई दिनों से ब्लैक आउट घोषित किया जा चुका है तथा लोगों को घरों से निकलने की मनाही की जा चुकी है।

ऐसे ही स्थिति एलओसी पार के पाक कब्जे वाले कश्मीर के गांवों में हैं जहां बकायदा मस्जिदों से एलान कर लोगों को घर खाली करने और सुरक्षित स्थानों पर चले जाने को कहा गया है। यह बात अलग है कि उस पार मस्जिदों से किए जाने वाले एलान उन भारतीय गांवों के लोगों को भी दहशतजदा बना रहे हैं जो एलओसी से पूरी तरह से सटे हुए हैं और जहां लाउडस्पीकरों की आवाजें असानी से पहुंचती हैं।

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