श्रीनगर। एलओसी पर हमलों के लिए पाक सेना अब नई रणनीति को अपनाए हुए है जो भारतीय सेना के लिए घातक साबित हो रही है। एलओसी पर भीषण हमलों के लिए पाक सेना रेजिमेंटों, यूनिटों और गश्ती दलों के बदलने के समय को चुन रही है। वह ऐसे समय में भारतीय जवानों को जबरदस्त क्षति पहुंचाने और सीमा चौकियों को कब्जाने व हथियाने के लिए चुन रही है।
सर्जिकल स्ट्राइक से पहले उड़ी में ब्रिगेड मुख्यलाय पर हुआ हमला, जिसमें 19 भारतीय जवानों की मौत हो गई थी, भी इसी नीति का हिस्सा था। दरअसल, उड़ी में भी उस समय हमला बोला गया था जब यूनिट और गश्ती दल अपनी पोजिशनों को बदल रहे थे।
सेनाधिकारी मानते हैं कि पाक सेना ऐसी रणनीति का इस्तेमाल हालांकि एक लंबे अरसे से करती आ रही है, पर सीजफायर के अरसे में उसने इसका त्याग कर दिया था, लेकिन अचानक एक बार फिर उसके द्वारा इस रणनीति का इस्तेमाल भारतीय सेना के लिए चौंकाने वाला है।
अधिकारियों के बकौल, दो साल पहले सालाबाटा गांव के आगे पड़ने वाली जिन तीन भारतीय पोस्टों पर पाक सेना के कमांडों ने कथित तौर पर कब्जा जमा लिया था उन्होंने उस समय को हमले के लिए चुना था जब क्षेत्र में रेजिमेंट अपना स्थान बदल रही थी। उनके मुताबिक, जब यह हमला हुआ उस समय सेक्टर में कमान संभालने वाली 20 कुमाऊं रेजिमेंट का स्थान 3-3 गोरखा ले रही थी।
अगर आपको याद हो तो पांच साल पहले अगस्त महीने की 6 तारीख को पुंछ की सरला पोस्ट पर हुए हमले के दौरान भी यही हुआ था जब पाक सैनिकों ने पांच भारतीय जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। तब सरला सीमा चौकी पर 21 बिहार रेजिमेंट अपना कार्यकाल पूरा कर लौट रही थीं और उसका स्थान मराठा लाइट इंफेंट्री ले रही थी। रक्षाधिकारियों के मुताबिक, जब किसी सेक्टर में या सीमा चौकी पर रेजिमेंट के बदलने का समय होता है तो वह समय बहुत ही महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है, क्योंकि नई आने वाली रेजिमेंट या यूनिट को वहां की परिस्थितियों से वाकिफ होने में कुछ समय लगता है और पाक सेना इसी का लाभ उठाने का प्रयास कर रही है।
अगर सूत्रों की मानें तो इससे पहले भी एलओसी के इलाकों में भारतीय जवानों के सिर काटकर ले जाए जाने की घटनाएं भी इसी रणनीति का हिस्सा थीं। तब गश्ती दलों के बदलने का समय पाक सैनिकों द्वारा ऐसे हमलों के लिए चुना गया था।
स्थिति यह है कि भारतीय सेना पाक सेना की इस रणनीति का कोई तोड़ नहीं ढूंढ पा रही है। सेनाधिकारी का कहना है कि पाक सेना अब न ही मौखिक समझौते मान रही है और न ही सीजफायर को मान रही है, जबकि भारतीय पक्ष के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि सीजफायर ने उसके हाथ बांध कर रखे हुए हैं। जानकारी के लिए अगले महीने की 26 तारीख को सीजफायर 14 साल पूरे करने जा रहा है।