वाराणसी। उत्तर प्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी वाराणसी में माघ पूर्णिमा के मौके पर बुधवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और घंटों पूजा-अर्चना की। चंद्र ग्रहण से नौ घंटे सूतक काल शुरू होने के कारण मंदिरों के कपाट बंद रहे।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, सूतक काल के दौरान मंदिरों में पूजा-अर्चना उचित नहीं माना जाता है। इस वजह सभी मंदिरों के कपाट बंद रहे। चंद्रग्रहण के कारण दशाश्वमेध घाट पर शाम को होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती ग्रहण समाप्त होने के बाद रात नौ बजे हुई।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सहित अनेक प्रमुख मंदिरों के कपाट रात नौ बजे के बाद खुले। कई मंदिरों के बाहर रात में सिर झुकाते श्रद्धालुओं को नमन करते देखा गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सुबह से सूतक काल होने के कारण गंगा स्नान करना उचित नहीं होने के कारण बेहद कम लोग घाटों पर स्नान करते दिखे, अधिकांश लोग सिर्फ पूजा-अर्चना कर रहे थे।
हालांकि जानकारी के अभाव में बहुत से श्रद्धालु सूतक काल में भी गंगा में डुबकी लगाते देखे गए। शाम के समय चंद्रग्रहण शुरू होने से पहले उसके 152 वर्ष बाद दिखने वाले अद्भुत नजारों को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग गंगा घाटों पर पहुंच गए थे, उनमें से ज्यादातर लोग चंद्रग्रहण समाप्त होने तक वहां मौजूद थे।
गौरतलब है कि सूतक काल शुरू होने से पहले श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक दशाश्वमेध एवं शीतला घाट के अलावा असि घाट सहित अधिकांश घाटों पर सुबह लगभग चार बजे से ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था।
सुबह साढ़े आठ बजे के बाद सूतक शुरू होने से पहले तक श्रद्धालुओं का सैलाब देखा गया, लेकिन उसके बाद स्नान करने वालों की संख्या दोपहर तक नगण्य रह गई। पुलिस सूत्रों ने बताया कि घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए, जबकि वहां पहुंचने के लिए समुचित यातायात व्यवस्था के साथ सड़कों पर जगह-जगह जवान विशेष निगरानी की गई। उन्होंने बताया कि जल पुलिस को विशेष तौर सतर्कता बरती गई। (वार्ता)