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मलंगगढ़ या हाजी मलंग की दरगाह, क्यों गरमाई महाराष्‍ट्र की राजनीति?

क्या है CM शिंदे के गुरु से मलंगगढ़ का कनेक्शन?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 4 जनवरी 2024 (15:14 IST)
  • एकनाथ शिंदे के बयान से गरमाई राजनीति
  • हाजी मलंग दरगाह पर मंदिर होने का दावा
  • 80 के दशक में आनंद दिघे साहेब ने शुरू किया था आंदोलन
Malanggarh dispute of Maharashtra: अब महाराष्‍ट्र के ठाणे जिले में स्‍थ‍ित हाजी मलंग दरगाह पर मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी कह दिया कि वह सदियों पुरानी हाजी मलंग दरगाह की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं। 
 
उन्होंने कहा कि 80 के दशक में शिंदे के गुरु और शिवसेना नेता आनंद दिघे साहब ने मलंग गडमुक्ति आंदोलन शुरू किया और अब हम सभी जय मलंग श्री मलंग कहने लगे। मलंगगढ़ को मुक्त किए बिना यह एकनाथ शिंदे आराम से नहीं बैठेगा। 
 
कहां है हाजी मलंग दरगाह : हाजी मलंग दरगाह समुद्र तल से 3000 फीट ऊपर माथेरान की पहाड़ियों पर मलंगगढ़ किले पास स्थित है। यहां यमन के 12वीं शताब्दी के सूफी हाजी अब्द-उल-रहमान की दरगाह है, जिन्हें स्थानीय लोग हाजी मलंग बाबा के नाम से जानते हैं। यहां हर वर्ष फरवरी में उर्स का आयोजन होता है। 
 
यहां दरगाह का उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है। 1882 में प्रकाशित बॉम्बे प्रेसीडेंसी गजेटियर में भी इसका उल्लेख है। संरचना का जिक्र करते हुए कहा जाता है कि यह मंदिर अरब मिशनरी हाजी अब्दुल-उल-रहमान के सम्मान में बनाया गया था, जो हाजी मलंग के नाम से मशहूर थे। कहा जाता है कि स्थानीय राजा नल राजा के शासनकाल के दौरान, सूफी संत कई अनुयायियों के साथ यमन से आए और पहाड़ी के निचले पठार पर बस गए।
 
दरगाह का बाकी इतिहास पौराणिक कथाओं में छिपा हुआ है। स्थानीय किंवदंती का दावा है कि नल राजा ने अपनी बेटी की शादी एक सूफी संत से की थी। हाजी मलंग और मां फातिमा दोनों की कब्रें दरगाह परिसर में हैं। बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजेटियर्स में कहा गया है कि संरचना और मकबरा 12वीं शताब्दी से अस्तित्व में हैं और पवित्र माने जाते हैं।
 
क्या है मलंगगढ़ की कहानी : ठाणे जिले की आधिकारिक वेबसाइट कहती है कि हाजी मलंगगढ़ ठाणे जिले में कल्याण से लगभग 15 किमी दूर एक किला है। इस किले का निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य राजा नल देव ने करवाया था। इस किले पर मछिंदरनाथ का प्राचीन मंदिर है। माघ पूर्णिमा के अवसर पर पहाड़ी पर पूजा करने की प्रथा दिघे ने ही शुरू की थी। इस यात्रा में नाथों की पालकी निकलती है। इस पालकी में ओंकार और नाथ संप्रदाय के प्रतीक चिन्ह हैं। इस समाधि पर हर पूर्णिमा को आरती की जाती है और समाधि पर भगवा वस्त्र चढ़ाया जाता है। इस समाधि की पूजा का सम्मान आज भी केतकर के हिंदू ब्राह्मण परिवार को है।
 
1990 के दशक में शिवसेना ने सत्ता में आते ही यह मुद्दा उठाया था। शिंदे ने अब इस मुद्दे को फिर से उठाने का फैसला किया है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
 
18वीं शताब्दी से जारी है विवाद : मंदिर पर संघर्ष के पहले संकेत 18वीं शताब्दी में शुरू हुए। स्थानीय मुसलमानों ने ब्राह्मणों द्वारा इसका रखरखाव किए जाने पर आपत्ति जताई। यह संघर्ष मंदिर की धार्मिक प्रकृति को लेकर नहीं बल्कि उसके नियंत्रण को लेकर था। 1817 में लॉटरी डाली गई और लॉटरी तीन बार काशीनाथ पंत के प्रतिनिधि के नाम से खुली, जिन्हें संरक्षक घोषित किया गया था, तब से केतकर हाजी मलंग दरगा ट्रस्ट के वंशानुगत ट्रस्टी हैं। उन्होंने मंदिर के रख-रखाव में भूमिका निभाई है। ऐसा कहा जाता है कि ट्रस्ट में हिंदू और मुस्लिम दोनों सदस्य थे, जो सद्भाव से काम करते थे।
 
मंदिर को लेकर सांप्रदायिक संघर्ष का पहला संकेत 1980 के दशक के मध्य में दिखाई दिया। उस समय शिव सेना नेता आनंद दिघे ने यह दावा करते हुए एक आंदोलन शुरू किया कि यह मंदिर हिंदुओं का है। यह 700 साल पुराना मछिंदरनाथ मंदिर था। 1996 में, उन्होंने मंदिर में पूजा करने के लिए 20,000 शिवसैनिकों को ले जाने पर जोर दिया। पूजा में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी समेत शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे भी शामिल हुए थे। तब से शिव सेना और दक्षिणपंथी समूह इस संरचना को श्री मलंगगढ़ के नाम से संदर्भित करते हैं। 
 
विवाद में ओवैसी की एंट्री : एकनाथ शिंदे के बयान पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 300 साल से बनी दरगाह को बदल देंगे। आप महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं आप इस तरह की बात कर रहे हैं। इतने साल से वह दरगाह है।

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