चचा गालिब का नाम तो सुना होगा। उन्होंने कई साल पहले एक शेर लिखा था। शेर कुछ इस तरह था-
‘इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश गालिब, कि लगाए न लगे बुझाए न बुझे’
जब-जब मुहब्बत का जिक्र आता है, चचा गालिब का यह शेर हरा हो जाता है। बल्कि इस दौर की लव स्टोरी पर भी मुफीद यानी फिट बैठता है। गालिब जो कह गए थे कि मुहब्बत वो आग है, जो लगाने से नहीं लगती, और एक बार लग गई तो लाख बुझाने पर नहीं बुझती।
कुछ ऐसा ही हुआ है मुहब्बत का भूत चढ़ा एक मामले में। यह ताजा मामला भी मुहब्बत का ही है, और इसमें मुहब्बत इतनी ‘जोर’ से चढ़ी कि कोई जोर ही नहीं चला।
जबरदस्त मुहब्बत, बल्कि कालजयी। जिसे आने वाले कई दिनों तक याद रखा जाएगा। पिता को अपने बेटे की सास से मुहब्बत।
जी, हां। ये मुहब्बत एक पिता को अपने बेटे की सास से ही हो गई। और ये इकतरफा भी नहीं थी, आग सास की तरफ से भी बराबर लगी।
तिस पर मुसीबत यह कि इनके चक्कर में बेटे का घर ही नहीं बस पाया।
मामला, दरअसल गुजराज के सूरत शहर का है। एक लड़के की शादी वहीं की एक लड़की से तय हुई। रिश्तेदारी भी हुई। लड़के के पिता और लड़की की मां के बीच गूटर गूं होने लगी फोन पर। प्यारी- प्यारी बातें। जाहिर है बेटे-बेटी के रिश्ते को लेकर कुछ मुलाकातें भी हुईं। लेकिन बातों ही बातों में यह इश्क परवान चढ़ गया। इसके पहले कि उनके बच्चों की शादी होती, वे दोनों ही एक दूसरे के साथ भाग निकले। बेटे की सास को लेकर भागे बेचारे बेटे की शादी ही टूट गई।
लेकिन प्यार में पागल प्रेमी-प्रेमिका को इससे क्या। वो तो अपनी मुहब्बत के लिए जी रहे थे। भागकर मध्यप्रदेश के इंदौर शहर आ गए। घरवालों ने ढूंढा-खोजा और समझाया तो कुछ ही दिन यहां रहने के बाद घर लौट गए। समझाइश पर दोनों अपने-अपने घर में रहने लगे, लेकिन फोन पर गूटर गूं यानी टाकिंग बंद नहीं हुई। मुहब्बत फिर से भड़क उठी। और फिर से भाग निकले।
कहा जाता है कि पहली बार भागने पर पिता को तो घर में पनाह मिल गई थी, लेकिन मां को घरवालों ने रखने से मना कर दिया था। अब कहा जा रहा है कि दोनों गुजरात में ही कहीं किराए के घर में रह रहे हैं।