श्रीनगर। पाकिस्तान से सटी 814 किमी लंबी एलओसी पर सीजफायर के बावजूद अब मिसाइलों के इस्तेमाल ने सीमावासियों की नींद तो उड़ा ही दी है, साथ ही सीजफायर पर भी सवाल उठने लगे हैं। यह पहली बार है कि भारतीय सेना ने इसे माना है कि पाकिस्तान की ओर से एंटी टैंक गाइडिड मिसाइलों का इस्तेमाल हो रहा है जबकि सच्चाई यह है कि एलओसी पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही पाक सेना भारी तोपखानों और ऐसे मिसाइलों का इस्तेमाल खुलकर करने लगा है।
वर्ष 2003 को 26 नवंबर को दोनों मुल्कों के बीच जम्मू-कश्मीर के 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बॉर्डर तथा 814 किमी लंबी एलओसी पर सीजफायर लागू करने का मौखिक समझौता हुआ था। अब जबकि पाक सेना भारी तोपखानों से गोले और एंटी टैंक गाडिड मिसाइल दाग रही है ऐसे में सीमावासियों का कहना था कि आखिर सीजफायर है कहां पर।
सीमाओं पर सीजफायर लागू करने के करीब दो महीनों के बाद ही सीजफायर की धज्जियां उड़ानी पाक सेना द्वारा आरंभ कर दी गई थीं। दरअसल उसे अपने जहां रुके पड़े आतंकियों को इस ओर धकेलना होता था और नतीजा यह है कि उसकी कवरिंग फायर की नीति के चलते सीजफायर तार-तार हो चुका हे और घुसपैठियों को रोकने की खातिर भारतीय सेना को बराबरी का जवाब देना पड़ रहा है।
अभी तक एलओसी तथा इंटरनेशनल बॉर्डर पर मोर्टार का ही इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन वर्ष 2016 में भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई से बौखलाई पाक सेना ने न सिर्फ गोलाबारी की रेंज को बढ़ा दिया बल्कि उसने एंटी टैंक गाइडिड मिसाइलों का इस्तेमाल भारतीय सेना के बंकरों और सीमा चौकिओं को उड़ाने के लिए करके भारतीय सेना को जरूर चौंका दिया था। फिर क्या था। सीजफायर के बावजूद ऐसे मिसाइलों का इस्तेमाल अब खुल कर एलओसी के सेक्टरों में होने लगा है।
ये दोनों ओर से हो रहा है। कुछ सप्ताह पूर्व भारतीय सेना ने एक वीडियो जारी कर इसकी पुष्टि की थी कि वह पाक सेना के बंकरों तथा सीमांत चौकियों को उड़ाने के लिए ऐसे मिसाइलों का इस्तेमाल कर रही है। कहने को तो पाकिस्तान से सटे जम्मू-कश्मीर के इंटरनेशनल बॉर्डर और एलओसी पर पिछले 14 सालों से दोनों मुल्कों की सेनाओं के बीच सीजफायर है पर अब हर दिन सीमाओं पर होने वाली गोलों और गोलियों की बरसात अब सीजफायर का मजाक उड़ाने लगी हैं। यही नहीं, गोलों व गोलियों की तेज होती बरसात के बीच लाखों सीमावासी अब फिर से पलायन की तैयारी में भी इसलिए जुट गए हैं क्योंकि सीजफायर के उल्लंघन को लेकर पाक सेना की हरकतें शर्मनाक होने लगी हैं।
सीमाओं पर जारी सीजफयर के बावजूद पाकिस्तानी सेना द्वारा इस साल एक महीने में 120 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 900 था। जबकि वर्ष 2016 में 437 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया है। जम्मू-कश्मीर में सीमा पर पिछले साल संघर्ष में 33 लोग मारे गए हैं जबकि 179 लोग घायल हुए हैं। आधिकारिक आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं कि पाक सेना ने लगभग हर दिन सीमा और एलओसी पर गोलाबारी की है। आधिकारिक आंकड़ों में बताया गया है कि जम्मू कश्मीर में सीमा पर 47,449 लोगों को संघर्ष विराम उल्लंघन के कारण सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया। इनमें से करीब 6 हजार रिलीफ कैंपों में रहे जबकि बाकी के अपने रिश्तेदारों के घर। उन्होंने बताया कि पिछले साल 780 बार एलओसी पर और 120 बार आईबी पर पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन किया। इनमें 20 सिविल लोग, आठ सेना के जवान और पांच बीएसएफ के जवान मारे गए। जबकि 2016 में बार्डर पर 437 बार सीजफायर उल्लंघन हुआ जिसमें 26 लोग मारे गए जबकि 97 अन्य घायल हुए। इस बार 22 लोग संघर्ष विराम की भेंट चढ़ चुके हैं।
इनमें सैनिक और नागरिक दोनों शामिल हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 में भी पाक सेना ने सबसे ज्यादा करीब 562 बार सीजफायर का उल्लंघन किया था। करीब करीब प्रत्येक सीजफायर के उल्लंघन का जवाब भारतीय पक्ष की ओर से दिया गया था। अर्थात उस ओर से गोले दागे गए तो इस ओर से भी गोले ही दागे गए। कभी मोर्टार का इस्तेमाल उस ओर से हुआ तो कभी छोटे तोपखानों का। नतीजा सामने था। वर्ष 2016 को 26 नवम्बर को 14 साल पूरे करने वाले सीजफायर के अरसे में अब आंकड़ा यह कहता है कि हर दिन पाक सेना ने गोलाबारी कर सीजफायर का मजाक उड़ा दिया। अब यह अनुपात बढ़ता जा रहा है। पिछले महीने का आंकड़ा लें तो उसने दिन में बीसियों बार गोलियां बरसाई हैं।
सीजफायर के पहले दो-तीन सालों में भी उल्लंघन की कुछ घटनाएं हुई थीं पर तब सैनिक ठिकाने ही पाक सेना के निशाने पर थे। पर अब एक बार फिर उसने सीमाओं पर सीजफायर से पहले वाली परिस्थिति पैदा कर दी है। अर्थात अब उसके मोर्टार और लंबी दूरी केे हथियारों के मुंह नागरिक ठिकानों की ओर हो गए हैं। यही कारण था कि वह अब जम्मू सीमा के गांवों को निशाना बना वहां मरघट की शांति पैदा करने में कामयाब रहा है। जम्मू सीमा के गांवों में भयंकर तबाही का मंजर है।
पाक सेना द्वारा सीजफायर के लगातार किए जाने वाले उल्लंघन का भारतीय पक्ष की नजर में एक ही कारण, घुसपैठियों को इस ओर धकेलना है। सैनिक अधिकारी कहते भी रहे हैं कि पाक सेना की नजरों में सीजफायर के मायने इसकी आड़ में आतंकियों को एकत्र करना और सैनिक ठिकानों को मजबूती प्रदान करना रहा है। हालांकि सीमावासियों का पाक गोलाबारी से बचाने की खातिर इंटरनेशनल बॉर्डर तथा एलओसी पर 15000 बंकरों के निर्माण का इरादा जताया गया है पर इस घोषणा के कारण आने वाले दिन जम्मू सीमा पर रहने वालों के लिए भयंकर और भारी साबित होने जा रहे हैं। अगर राज्य सरकार पाक गोलाबारी से सीमावासियों को बचाने की खातिर प्रत्येक घर में बंकरों का निर्माण करना चाहती है तो पाकिस्तान ऐसे बंकरों के निर्माण को रूकवाने पर आमदा है। इसके लिए उसने अब सीधे तौर पर धमकी देते हुए सीमा पर ‘मुहंतोड़ और जबरदस्त’ गोलाबारी की बात कही है।
वैसे तो यह पहला मौका नहीं है कि पाकिस्तान ने जम्मू सीमा पर बंकरों के निर्माण पर आपत्ति उठाई हो पर यह पहला अवसर है कि उसने सीजफायर के दौरान ऐसी धमकी देकर सीमावासियों को दहशतजदा कर दिया है। अब पाकिस्तान की नई धमकी के कारण उनका अपने खेतों और घरों में वापस लौटने का सपना टूटता नजर आने लगा है। पाकिस्तान ने जम्मू के इंटरनेशल बार्डर पर बंकरों के निर्माण पर आपत्ति जताते हुए धमकी दी है कि अगर भारत ने जम्मू सीमा पर बंकरों का निर्माण किया तो भयानक तबाही होगी। इस धमकी के पीछे वह तर्क देता है कि जम्मू का बॉर्डर वर्किंग बाउंडरी है और वर्ष 2010 में हुए समझौते के तहत 500 मीटर के भीतर कोई निर्माण नहीं हो सकता।
जबकि बंकरों का निर्माण गांवों के भीतर होने जा रहा है जो जीरो लाइन से 500 मीटर से 3 किमी पीछे हैं। हालांकि वर्ष 1995 में जब जम्मू सीमा पर तारबंदी का कार्य आरंभ हुआ था तो उस समय भी बंकरों के निर्माण पर आपत्ति करते हुए पाकिस्तानी सेना ने जबरदस्त गोलाबारी कर सीमांत क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई थी। नतीजतन स्थिति यह है कि 198 किमी लंबी जम्मू सीमा पर रहने वाले लाखों लोगों की जिन्दगी बदहाल होने जा रही है जो घरों को छोड़ कर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं उनकी घर वापसी अब मुश्किल लगने लगी है।
गंभीर होती स्थिति का परिणाम यह है कि सीजफायर के बावजूद हो रहे युद्ध में सीमावासी पिसने लगे हैं। गोलों और मिसाइलों की बरसाम के बीच उनका जीना दुश्वार हो चुका है। खेतों में गए हुए उन्हें कई कई दिन हो गए हैं। बच्चों ने स्कूलों का मुंह तक नहीं देखा है। हालत यह है कि वर्ष 2003 में हुए सीजफायर की प्रत्येक बरसी पर खुशी मनाने वाले सीमावासी अब यही दुआ करने लगे हैं कि आर-पार की जंग हो जाए ताकि तिल- तिलकर मरने से मुक्ति मिल जाए।