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अप्रैल का महीना रहा अब तक का सबसे गर्म माह, औसत तापमान 15.03 डिग्री सेल्सियस रहा

यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने जारी किए आंकड़े

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, बुधवार, 8 मई 2024 (12:23 IST)
April was the hottest month till date : दुनियाभर में इस साल अप्रैल का महीना ( month of April) अब तक का सबसे गर्म अप्रैल रहा और रिकॉर्ड गर्मी (record heat), बारिश (rain) व बाढ़ के कारण कई देशों में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। नई दिल्ली में बुधवार को जारी नए आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है।
 
यूरोपीय संघ की जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने कहा कि यह रिकॉर्ड-उच्च तापमान का लगातार 11वां महीना था, जो कमजोर हो रहे अल नीनो (मौसम प्रणाली) और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव का परिणाम है।

 
अप्रैल में औसत तापमान 15.03 डिग्री सेल्सियस रहा : अप्रैल में औसत तापमान 15.03 डिग्री सेल्सियस रहा, जो निर्दिष्ट पूर्व-औद्योगिक संदर्भ अवधि (1850 से 1900) में उल्लेखित अप्रैल के औसत तापमान से 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह अप्रैल के लिए 1991-2020 के औसत से 0.67 डिग्री सेल्सियस अधिक और अप्रैल 2016 में दर्ज किए गए पिछले सबसे उच्च तापमान से 0.14 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
 
वर्ष की शुरुआत में अल नीनो चरम पर था : सी3एस के निदेशक कार्लो बूनटेम्पो ने कहा कि वर्ष की शुरुआत में अल नीनो चरम पर था और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान अब न्यूट्रल स्थितियों की ओर वापस जा रहा है। हालांकि, एक ओर अल नीनो जैसी प्राकृतिक प्रणालियों से जुड़े तापमान में बदलाव आते-जाते रहते हैं, तो दूसरी ओर ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता के कारण समुद्र व वायुमंडल में मौजूद अतिरिक्त ऊर्जा वैश्विक तापमान को नए रिकॉर्ड की ओर धकेलती रहेगी।

 
वैश्विक औसत तापमान सबसे अधिक दर्ज : जलवायु एजेंसी ने कहा कि पिछले 12 महीनों (मई 2023-अप्रैल 2024) में वैश्विक औसत तापमान सबसे अधिक दर्ज किया गया है, जो 1991-2020 के औसत से 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1850-1900 की अवधि के पूर्व-औद्योगिक काल के औसत से 1.61 डिग्री सेल्सियस अधिक है। सी3एस के अनुसार वैश्विक औसत तापमान जनवरी में पहली बार पूरे वर्ष की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।
 
ग्रीनहाउस गैसों की तेजी से बढ़ती सांद्रता : वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन) की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान 1850-1900 के औसत की तुलना में पहले ही लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। माना जा रहा है कि इस तापमान वृद्धि के कारण दुनियाभर में रिकॉर्ड सूखा, जंगलों में आग और बाढ़ जैसी घटनाएं देखी जा रही हैं।
 
जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसा जलवायु घटनाओं के प्रभाव से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2049 तक प्रति वर्ष लगभग 380 खरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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