क्या मोदी के लिए लोकतंत्र का मंदिर और राम मंदिर एक ही है
पहले संसद और अब अयोध्या, आखिर क्या संदेश है प्रधानमंत्री मोदी के दंडवत प्रणाम में
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार संसद की पहली सीढ़ी पर पैर रखा तो उन्होंने वहां दंडवत प्रणाम किया था। यह दृश्य पूरे देश की मीडिया ने अपने कैमेरे में कवर किया था। अगले दिन देशभर के कई अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर मोदी की यह तस्वीर लगाई गई थी।
2020 में 5 साल बाद एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी की कुछ वैसी ही तस्वीर देखने को मिली है। इस बार दिल्ली की बजाए अयोध्या है, संसद की बजाए रामजन्म भूमि है। लेकिन जब वे मंदिर में पहुंचे तो उन्होंने दंडवत प्रणाम किया। दो शहर, दो स्थान, लेकिन जो समानता है वो है उनका दंडवत प्रणाम। मंदिर की मिट्टी को माथे से लगाया।
दो समय काल में मोदी ने एक बार लोकतंत्र के मंदिर में साष्टांग किया था तो दूसरी बार अब भगवान राम के मंदिर ठीक वैसा ही किया। प्रधानमंत्री मोदी की बॉडी लैंग्वेज और उनकी शैली को लेकर अक्सर बात होती रही है। लेकिन आखिर उनके साष्टांग का क्या अर्थ है।
दरअसल, उनका दंडवत देश को मैसेज देने की तरह है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए लोकतंत्र का मंदिर यानी देश और भगवान राम का मंदिर एक समान है। वे दोनों में कोई फर्क नहीं करते हैं।
जितना महत्वपूर्ण उनके लिए देश की संसद है उतना ही महत्व वे राम मंदिर को देते हैं, क्योंकि भगवान राम किसी एक की आस्था का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि राम सबके हैं, भारत की आत्मा में राम है, भारत के दर्शन में राम है। ठीक उसी तरह से जैसे देश किसी एक का नहीं बल्कि सभी का है।
उन्होंने भगवान राम को सिर्फ भारत तक या किसी एक भाषा के लोगों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया का जिक्र किया तो वहीं उन्होंने यह भी कहा कि रामायण आज हर भाषा में उपलब्ध है। उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को राममय बताया।
जब वे प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद पहली बार संसद गए तो उन्होंने संसद की सीढ़ी पर जिस तरह से दंडवत प्रणाम किया तो हर कोई अवाक था। दुनिया के किसी प्रधानमंत्री को लोगों ने इस तरह प्रणाम नहीं किया। जब वे राम मंदिर में साष्टांग करते नजर आए तो एक प्रधानमंत्री का इस तरह मंदिर में सबके सामने दंडवत होना भी चौंकाता है, लेकिन इन सब के पीछे नरेंद्र मोदी की मंशा शायद यही है कि उनके लिए लोकतंत्र का मंदिर और राम मंदिर एक ही है, वे इन दोनों में कोई फर्क नहीं करते हैं। अब देशवासियों को भी यह बात समझना चाहिए।