नई दिल्ली। आर्थिक विश्लेषक रुचिर शर्मा का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फिर से चुने जाने की संभावना 2017 में 99 प्रतिशत से घटकर 2019 में 50 प्रतिशत हो गई है। यह स्थिति बिखरे हुए विपक्ष के एकजुट होने के कारण भी दिखाई दे रही है।
न्यूयॉर्क में रहने वाले स्तंभकार और अर्थशास्त्री तथा आने वाली किताब 'डेमोक्रेसी ऑन रोड' पर काम कर रहे रुचिर शर्मा ने कहा कि 2014 के आम चुनावों में भाजपा ने 31 प्रतिशत मतों के साथ जीत हासिल की थी, क्योंकि उस वक्त विपक्ष बिखरा हुआ था। उस वक्त सीटों का बंटवारा असंगत था और उनका वोट केंद्रित था। उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं।
शर्मा ने साक्षात्कार में कहा कि हालांकि इसमें नाटकीय रूप से परिवर्तन आया है। अब यह चुनाव 50-50 रह गया है और यह सब गठबंधन की संभावनाओं के कारण हुआ है। पूरी तरह से बिखरे हुए विपक्ष के साथ आने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। शर्मा की नई किताब 2019 के चुनावों के पहले फरवरी में बाजार में आने की उम्मीद है।
1990 से भारत में कई चुनाव देख चुके लेखक याद करते हैं कि 2004 के चुनावों में उस वक्त के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और विपक्ष के बीच लोकप्रियता का अंतर और कुछ इसी तरह की स्थिति वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी और आज के विपक्ष के बीच है।
उन्होंने कहा कि वाजपेयी के समय में भी जब विपक्ष एकजुट हो गया था तो यही सवाल पूछा गया था कि अगर वाजपेयी नहीं, तो पीएम कौन बनेगा? और अचानक से एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना दिया गया। 2004 में भाजपा की अगुवाई वाले राजग ने हार स्वीकार कर ली थी और कांग्रेस सत्ता में आई थी, जहां मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था।
उत्तरप्रदेश को 'लघु भारत' की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि यहां 80 सीटें हैं और यदि बसपा और सपा के बीच गठबंधन हो जाता है, तो वे चुनाव में बाजी मार लेंगे अन्यथा सत्ता भाजपा के पाले में जाएगी। एकदम साफ-सी बात है। (भाषा)