नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की वकालत करते हुए 'न्यू इंडिया' के निर्माण के लिए शासन के तीनों अंगों न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका से आपस में मिल-जुलकर काम करने की अपील की।
मोदी ने यहां विज्ञान भवन में 'संविधान दिवस' पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव कराना बहुत ही खर्चीला काम हो गया है और इससे देश पूरे साल चुनावी मोड में रहता है जिससे शासन का कामकाज बाधित होता है।
उन्होंने कहा कि पहले ये चुनाव साथ -साथ होते है और उसे लेकर अनुभव बहुत अच्छे थे लेकिन हमारी आंतरिक कमजोरियों के कारण यह व्यवस्था खत्म हो गई। उन्होंने कहा कि संविधान दिवस पर इस पर देशभर में चर्चा की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कई देशों में चुनाव की तारीख तय है और वे उसी दिन होते हैं। मोदी ने बताया कि 2009 में लोकसभा चुनाव पर 1100 करोड़ रुपए तथा 2014 में 4000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, इसलिए एकसाथ चुनाव कराने पर आर्थिक बोझ कम होगा।
मोदी ने कहा कि तीनों अंगों की सीमाओं का निर्धारण संविधान की मूल भावना है जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। विधायिका कानून बनाने, न्यायपालिका उसकी व्याख्या करने तथा कार्यपालिका फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। यह समय की मांग है कि तीनों अंग अपनी मर्यादाओं में रहते हुए जनता की आकांक्षाओं को पूरा करें। ' न्यू इंडिया' के सपने को साकार करने के लिए तीनों को एक-दूसरे को सशक्त करना चाहिए और एक-दूसरे की जरूरतों को समझना चाहिए।
सभी संस्थाओं में संतुलन की जरूरत पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि जिस संस्था में जितना अंकुश और संतुलन रहेगा वह उतनी ही मजबूत होगी। संविधान की मजबूती की बदौलत ही आपातकाल के बाद लोकतंत्र पटरी पर आ सका था। उन्होंने कहा कि आज संविधान दिवस पर एक अहम सवाल पैदा हुआ है कि क्या हम हम उन मर्यादाओं का पालन कर रहे हैं जिसकी हमारे संविधान निर्माताओं ने हमसे अपेक्षा की थी। क्या हम एक परिवार की तरह एक-दूसरे की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। यह सवाल सिर्फ न्यायपालिका या सरकार में बैठे लोगों के समक्ष नहीं है बल्कि देश के हर उस स्तंभ और संस्थान के लिए है जिनपर देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदें टिकी हैं।
मोदी ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी हम अपनी अंदरूनी कमजोरियों को दूर नहीं कर सके। हमारी यह मानसिकता बन गई है कि 'मेरा क्या और मुझे क्या।' यदि हम यह सोचेंगे कि आने वाली पीढ़ी साहसिक फैसले लेगी और काम करेगी तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। हमें अभी से काम करना शुरू करना होगा क्योंकि हम रहे या न रहें व्यवस्था जरूर रहेगी। हमें मिलकर ऐसी स्वावलंबी और स्वाभिमानी संस्था बनानी है जिससे गरीबों का जीवन आसान बन सकें।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने भी कहा कि तीनों अंगों को एकदूसरे पर प्रभुत्व जमाये बिना एकदूसरे का परस्पर सम्मान करना चाहिए। शिक्षा के अधिकार सम्बन्धी कानून का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका नीति बनाने में हस्तक्षेप नहीं करती लेकिन नीतियों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने में दखल दे सकती है। प्रधानमंत्री पद को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा उस पर संवैधानिक दायित्व है और वह संविधान का रक्षक है।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे हो और किन लोगों की हो इस पर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को कानून की व्याख्या करने की स्वतंत्रता है लेकिन शासन का काम सरकारों का है क्योंकि सरकारें चुनाव के जरिए जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं। (वार्ता)