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आखि‍र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्‍यों बोले?

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नवीन रांगियाल

, मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020 (19:10 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आज के भाषणों की शायद ही कोई मीडि‍याकर्मी समीक्षा कर पाए। शायद ही कोई डि‍बेट हो पाए या न्‍यूजरूम में कोई बहस छि‍ड़ सके।

आज के इस भाषण से न तो किसी अखबार की कोई हैडिंग बन पाएगी और न ही डि‍जिटल न्‍यूज पोर्टल्‍स में कोई फ्लैश या ब्रेकिंग ही बन सकेगी।

ज्‍यादातर विपक्ष के नेता खासतौर से राहुल गांधी इस संबोधन पर शायद ही कोई ट्वीट कर पाए।

बल्‍कि प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी की बात को सच ही कर दिया। आज राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था,

अपने 6 बजे वाले संबोधन में मोदी जी बताएं कि वो किस तारीख को चीनि‍यों को भारतीय सीमा से बाहर फेंकने वाले हैं

मोदी चीन पर भी कुछ नहीं बोले, देश के किसी वर्ग के लिए कोई आर्थि‍क पै‍केज की घोषणा नहीं की। अपनी शख्‍स‍ियत के मुताबि‍क चौंकाने वाला कोई फैसला नहीं सुनाया।

ऐसे में प्रधानमंत्री के इस वक्‍तव्‍य से सिर्फ एक ही सवाल जेहन में कौंध रहा है... वे आखि‍र क्‍यों बोले?

साढ़े 12 मिनट के अपने संबोधन में मोदी जी ने कोरोना को लेकर वही सब कहा जो अमिताभ बच्‍चन रोजाना मोबाइल फोन में कह रहे हैं और लोग सुन रहे हैं। खुद मोदी कोरोना को लेकर अलग अलग मौकों पर इस तरह की बातें बोल चुके हैं।

हालांकि उन्‍होंने आम जनमानस को अपने स्‍वभाव के मुताबि‍क कोरोना वायरस को लेकर ढि‍लाई नहीं बरतने को लेकर दार्शनि‍क समझाइश जरूर दी। इसमें उन्‍होंने रामचरित मानस और कबीर जी की सीख का सहारा लिया।
मोदी द्वारा दि‍ए गए इन दो उदाहरणों से जीवन की सीख जरुर ली जा सकती है। जो न सिर्फ कोरोना काल में बल्‍कि जीवन के अन्‍य मोर्चों पर निशंक काम आ सकती है। आध्‍यात्‍मिकता के लिहाज से उनके यह उदाहरण जरुर मायने रखते हैं।

रामचरित मानस के सोरठा का जि‍क्र कर उन्‍होंने कहा, रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन॥

या‍नि शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को छोटा या कमतर नहीं समझना-मानना चाहिए। यह किसी भी समय में खतरनाक हो सकते हैं।

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कबीर दास जी के दोहे के सहारे जनता को समझाया- पकी खेती देखिके, गरब किया किसान। अजहूं झोला बहुत है, घर आवै तब जान।

पकी हुई खेती को देखकर किसी भी किसान को खुश नहीं होना चाहिए। जब तक फसल कटकर और साफ होकर घर नहीं आ जाती तब तक किसान को संतुष्‍ट नहीं होना चाहिए।

मीडि‍या में वैसे ही टीआरपी को लेकर प्रति‍बंध चल रहा है, ऐसे में खबरों के सन्‍नाटे के बीच वे और भी मायूस कर गए।

कुल मिलाकर पीएम मोदी के आज का भाषण महज भर एक औपचारिकता से ज्‍यादा कुछ नहीं लगा। संभवत: साढ़े 12 मिनट के बाद स्‍वयं प्रधानमंत्री को भी यह अहसास हुआ हो कि आखि‍र वे क्‍यों बोले?

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