नई दिल्ली। निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड के 4 मुजरिमों में से एक अक्षय कुमार सिंह ने 'मौत की सजा' के फैसले पर पुनर्विचार के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करते हुए हास्यास्पद तर्क देते हुए दिल्ली के प्रदूषण का सहारा लिया है। उसने कहा कि दिल्ली का प्रदूषण वैसे ही जानलेवा है तो मुझे फांसी क्यों दे रहे हो? इस तरह के माहौल में फांसी की सजा की जरूरत ही नहीं है।
अक्षय ने तर्क दिया है कि मौत की सजा पर अमल अपराध को नहीं, बल्कि सिर्फ अपराधी को मारता है। दिल्ली में प्रदूषण का सहारा लेते हुए उसने कहा कि यहां पर प्रदूषण उच्चतर स्तर पर पहुंच गया है। दिल्ली की हवा और पानी खराब होने के चलते जिंदगी लगातार कम हो रही है और बहुत कम लोग 80 से 90 साल तक जी पाते हैं।
सनद रहे कि दिसंबर, 2012 में हुए सनसनीखेज निर्भया कांड में उच्चतम न्यायालय ने 2017 में चारों मुजरिमों की मौत की सजा के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया था। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने चारों को मौत की सजा के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि कर दी थी।
दक्षिण दिल्ली में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात चलती बस में 6 व्यक्तियों ने 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी करके सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया का बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर में माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में निधन हो गया था।
इस प्रकरण में 33 वर्षीय अक्षय ने अभी तक पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की थी, जबकि 3 अन्य दोषियों 30 वर्षीय मुकेश, 23 वर्षीय पवन गुप्ता और 24 वर्षीय विनय शर्मा की पुनर्विचार याचिका न्यायालय पहले ही खारिज कर चुका है। अक्षय ने अपने वकील एपी सिंह के माध्यम से दायर पुनर्विचार याचिका में मौत की सजा के संभावित अमल के खिलाफ दलीलें दी हैं।
इस समय दिल्ली की एक जेल में बंद अक्षय ने अपनी याचिका में कहा है कि मौत की सजा ‘बेरहमी से हत्या’ है और यह दोषियों को सुधरने का अवसर प्रदान नहीं करती है। याचिका में मौत की सजा खत्म करने के कारणों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिससे पता चलता हो कि इस दंड का भय पैदा करने का कोई महत्व हो।
याचिका में पूर्व प्रधान न्यायाधीश पीएन भगवती की टिप्पणियों का भी जिक्र किया गया है कि गरीब पृष्ठभूमि वाले अधिकांश दोषियों को फांसी के फंदे तक भेजने की संभावना अधिक रहती है।
'निर्भया कांड' को अंजाम देने वाले 6 अपराधियों में से एक रामसिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी, जबकि छठा आरोपी किशोर था और उसे किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था। इस किशोर को 3 साल की सजा पूरी करने के बाद सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि पुनर्विचार याचिका के बाद दोषियों के पास सुधारात्मक याचिका दायर करने का विकल्प होता है। इसमें भी सफलता नहीं मिलने पर वे राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर सकते हैं। दया याचिका खारिज होने के बाद ही प्रशासन स्थानीय अदालत से ऐसे दोषी की मौत की सजा पर अमल के लिए आवश्यक वारंट प्राप्त कर सकता है।