भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार को 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने का फैसला पूरी तैयारी के तहत 10 माह पहले ले लिया था। लेकिन उन्हें यह फैसला क्यों लेना पड़ा? इसके पीछे बड़ा कारण बताया जा रहा है। दरअसल, नकली नोटों के जाल को लेकर इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टिट्यूट (ISI) सहित कई सिक्यॉरिटी एजेंसियों की तरफ से हुई टॉप सीक्रिट स्टडी की गई थी।
इस स्टडी को मोदी के सामने फरवरी और मार्च में पेश किया गया था। इस पर मोदी ने अपनी टीम को इस दिशा काम करने के लिए कहा था। रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 400 करोड़ रुपए के जाली नोट यानी फेक इंडियन करंसी नोट (एफआइसीएल) चल रही थी। स्टडी में यह भी बताया गया था कि यह पिछले चार साल में 2011-12 से 2014-15 के बीच एक ही स्तर पर रहा है।
रिपोर्ट के हिसाब से सिस्टम में 500 रुपए के मुकाबले 1000 के जाली नोट कम पाए गए थे। स्टडी में यह भी पता चला था कि सिस्टम में 100 के जाली नोट 1000 वाले जितने ही हैं लेकिन सरकार ने 100 के करंसी नोट को खत्म नहीं करने का फैसला किया।
एनबीटी के अनुसार, स्टडी नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी और आइएसआइ दोनों ने मिलकर की है। इसमें कहीं यह सुझाव नहीं दिया गया था करंसी को डी-मॉनेटाइज कर दिया जाए। इसमें फाइनेंशल इंस्टिट्यूशंस की तरफ से जाली नोटों की पहचान में सुधार लाने के लिए पांच ऐक्शन पॉइंट्स की पहचान की गई थी। स्टडी में दिए गए सुझावों को लागू किए जाने से अगले तीन से पांच वर्षों में जाली नोटों की संख्या आधी रह जाएगी।
स्टडी में यह भी पाया गया है कि 80 पर्सेंट जाली इंडियन नोट तीन प्राइवेट सेक्टर बैंकों- HDFC, ICICI और एक्सिस बैंक ने पकड़े हैं। स्टडी के अनुसार, 'दूसरे फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस की रिपोर्टिंग में सुधार के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए।' स्टडी में एनबीएफसी की पहचान बड़े लूपहोल की तरह की गई थी जहां बड़ी संख्या में कैश हैंडलिंग होती है, लेकिन यह डिटेक्शन सिस्टम से बाहर रहता है।