मुंबई। शिवसेना ने केंद्र सरकार के दावे को चुनौती देते हुए नोटबंदी के बाद शहीद हुए सैनिकों की वास्तविक संख्या का खुलासा करने को कहा है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार इस बात का दावा करती रही है कि नोटबंदी से आतंकियों के वित्त पोषण पर रोक लगी है। शिवसेना ने रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के एक बयान पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि सेना को राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए।
अपने मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित एक संपादकीय में शिवसेना ने कहा है कि जम्मू के अखनूर सेक्टर में सोमवार को जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स (जीआरईएफ) के शिविर पर हुआ हमला, यह साबित करता है कि नोटबंदी से आतंकी पस्त नहीं हुए हैं और उनकी आतंकी गतिविधियां बिना किसी रुकावट के जारी है।
संपादकीय में कहा गया है, आतंकवादी एक समय में सार्वजनिक स्थानों पर हमला किया करते थे लेकिन अब वे सीधे सैन्य शिविरों को निशाना बना रहे हैं और जवानों को मार रहे हैं। क्या इसे परिवर्तन के तौर पर देखा जाना चाहिए? आतंकी हमलों को नाकाम किए जाने को नोटबंदी के प्रमुख कारण के तौर पर उद्धत किया गया। लेकिन आतंकी हमलों की घटनाएं जारी हैं, यहां तक कि मणिपुर में भी कई स्थानों पर।
उसमें साथ ही कहा गया है, पिछले वर्ष 60 जवान शहीद हुए जबकि 2014 में 32 और 2015 में 33 जवान शहीद हुए थे। इसे पाकिस्तानियों पर लगाम लगाने का लक्षण कैसे माना जाए? किसी को भी सेना को राजनीतिक कीचड़ में नहीं खींचना चाहिए।
संपादकीय में साथ ही कहा गया है, राष्ट्रीय महत्व के बजाय नोटबंदी बहुत हद तक एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। नोटबंदी के बाद शहीद हुए सैनिकों का असल आंकड़ा घोषित हो और नोटबंदी की राजनीति हमेशा के लिए दफन हो।
शिवसेना ने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि अगर इतना ही शौर्य है, तो उसी हिम्मत के साथ वह देश में समान नागरिक संहिता लागू कराए, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराए और संविधान की धारा 370 को समाप्त करे। (भाषा)