नई दिल्ली। विशेषज्ञों का कहना है कि पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पाद एवं डेयरी उत्पाद प्रदूषण के लिए वैसे ही जिम्मेदार हैं, जैसे कि सड़कों पर चलते वाहनों से होने वाला उर्त्सजन।
अमेरिकी पत्रिका 'प्रोसिडिंग्स ऑफ दि नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज' के एक अध्ययन के मुताबिक पौधों से प्राप्त आहार को ज्यादा से ज्यादा अपनाने और मांसाहार भोजन का परित्याग करने से भोजन से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 70 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।
शाकाहारी भोजन करने वाली एक विपणन अधिकारी विचित्रा अमरनाथन ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए इस समय हम सबसे बड़ी पहल शाकाहार अपनाकर कर सकते हैं। मांसाहारी भोजन ग्रीनहाउस गैस के 50 प्रतिशत से ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
शाकाहारी भोजन के बढ़ते प्रचलन के बीच मंगलवार को 'विश्व पर्यावरण दिवस' के मौके पर राष्ट्रीय राजधानी के कई रेस्तरां विशेष शाकाहारी व्यंजन परोसेंगे। उदाहरण के रूप में मंगलवार से 'द मेट्रोपॉलिटन होटल एंड स्पा' में स्थित 'जिंग' रेस्तरां विशेष शाकाहारी सूप, पिज्जा, रोल आदि परोस रहा है। रेस्तरां में ऐसा 6 जून तक जारी रहेगा, जैसे रोज कैफे, स्मोक हाउस डेली और कैफे टर्टल जैसे कई कैफे में विशेष शाकाहारी व्यंजन परोसे जा रहे हैं, जो मांसाहारी व्यंजनों का विकल्प हैं यानी शाकाहारी व्यंजन होने के बावजूद खाने में मांसाहारी व्यंजन जैसे लगते हैं।
इसके अलावा फैशन एवं कॉस्मेटिक्स में ऐसे उत्पाद प्रचलित हो रहे हैं जिनमें पशुओं से मिलने वाले उत्पादों का इस्तेमाल नहीं होता। कॉस्मेटिक कंपनी 'एपीएस कॉस्मेटोफूड' के संस्थापक हिमांशु चड्ढा ने कहा कि हम 100 प्रतिशत प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें जैविक रूप से उगाया जाता है और हमारे उत्पाद बनाने में शराब, सरफेक्टैंट्स, पैराबेन एवं दूसरे रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता जिससे काफी हद तक पर्यावरण को बचाने में मदद मिलती है।
पर्यावरणविद गौरव बंद्योपाध्याय ने कहा कि अपने बगीचे में रसोईघर के जैविक अपशिष्ट का इस्तेमाल करें, सब्जियां उगाएं, क्योंकि शाकाहारी भोजन देने के अलावा वे आपको ताजा ऑक्सीजन भी देते हैं। (भाषा)