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नजरिया : मोदी सरकार के प्रति 'सबका विश्वास' कम होने के चलते देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन

वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का नजरिया

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विकास सिंह

, बुधवार, 18 दिसंबर 2019 (08:45 IST)
नागरिकता कानून के खिलाफ देश में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला तेज हो गया है। जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में शुरु हुई विरोध की आग अब दिल्ली के अन्य हिस्सों में फैलने लगी है। मंगलवार को दिल्ली में सीलमपुर, जाफराबाद में नागरिकता कानून के विरोध में जमकर प्रदर्शन हुआ। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने कई बसों में तोड़फोड़, पथराव करने के साथ आगजनी की। इस दौरान लोगों को खदड़ने के लिए पुलिस ने हल्ला बलप्रयोग करने के साथ ही आंसू गैस को भी प्रयोग  किया। दूसरी तरफ दिल्ली के साथ ही उत्तर प्रदेश के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन की भी खबरें आ रही है। 

नागरिकता कानून को लेकर बढ़ते हंगामा को लेकर वेबदुनिया से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार और लीगल एक्सपर्ट रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं उनकी नजर इस पूर हंगामे के पीछे खुद पूरी तरह से मोदी सरकार ही जिम्मेदार  है। वह कहते हैं कि वास्तव में मोदी सरकार का एजेंडा ही हैं कि मुख्य मुद्दें जैसे आर्थिक मंदी और गरीबी से लोगों का ध्यान हटा कर धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जाए। वह कहते हैं कि उनकी नजर में नागरिकता के मुद्दें को जानबूझकर छेड़ा गया जिससे कि और सभी मुद्दें दब जाए। 
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वह कहते हैं कि भाजपा इस पूरे मुद्दें को एक राजनीतिक अवसर के रुप में देख रही है और अपने सियासी फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करती जा रही है। झारखंड़ में चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी का यह बयान कि हिंसा फैलाने वालों को उनको कपड़ों से पहचाना जा सकता है पूरी स्थिति को स्पष्ट करता है। वह कहते हैं कि भाजपा 2019 में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के जिस नारे के साथ सामने आई थी उसको अगर मौजूदा हालात में देखा जाए तो वह ‘सबका विश्वास’ एक तरह से खो चुकी है।

वह कहते हैं कि लोकतंत्र में बहुमत की जिम्मेदारी होती है कि वह समाज के सभी वर्गों को लेकर एक साथ चले लेकिन मौजूदा हालात में जिस तरह बहुसंख्यकवाद के सहारे हिंदुत्व के झंडे को बुलंद किया जा रहा है किसी भी नजर से सहीं नहीं है।  वह कहते हैं कि उनकी नजर में भाजपा हिंदुत्व को सही तरीके से समझ नहीं पा रही है। वह कहते हैं कि नागरिकता कानून के साथ विदेशों में भारत की छवि को गहर धक्का लगाएंगे जिसको सुधारने में काफी वक्त लगेगा।  
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वेबदुनिया से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि भाजपा और उसके जुड़े संगठन संघ जिस तरह हिंदू राष्ट्र और हिंदुत्व के मुद्दें को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है उसे अब खुलकर मोदी सरकार पूरा कर रही है। वह कहते हैं कि उनकी नजर में इस बात की कोई आवश्यकता ही नहीं थी कि देश  में नागरिकता जैसा कानून बनाया जाए क्योंकि देश में नागरिकता देने के कई कानून पहले से ही मौजूद थे। वहीं इस कानून को लेकर कई संशय हैं जैसे पाकिस्तान, अफगनिस्तान और बांग्लादेश से आ रहे लोगों की कैसे पहचान होगी कि वह धार्मिक रुप से प्रताड़ित है और वह हिंदू हैं या मुसलमान। वह कहते हैं कि ऐसे किसी कानून को कोई औचित्य ही नहीं था जो हिंदू – मुस्लिमों के बीच कोई दरार पैदा करते है या किसी भी प्रकार भड़काते है।
 
शैक्षाणिक संस्थाओं में नागरिकता कानून के बढ़ते विरोध प्रदर्शन पर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि बीजेपी जानबूझकर शैक्षाणिक संस्थाओं के एक के बाद एक विलेन के रूप में पेश कर रही है।  पहले जेएनयू को कठघरे में खड़ा किया और अब जामिया और एमयू जैसे संस्थानों पर सवाल खड़े किया गया। बीजेपी नेताओं के शैक्षाणिक संस्थाओं के बारे में टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि इसके जरिए देश में एक खतरनाक ट्रैंड पैदा किया जा रहा है। वह बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस तरह फिरोज खान का विरोध हुआ और उसको अपना विभाग बदलना पड़ा वह इस टैंड का एक हिस्सा है। 
 
वह छात्रों के आंदोलन पर कहते हैं कि छात्रों का किसी आंदोलन में आना कोई नहीं बात नहीं है । वह कहते हैं कि अगर इतिहास में देखा जाए तो आजादी से लेकर जेपी आंदोलन तक छात्र बड़ी संख्या में आंदोलनों में शामिल होते आए है और आज भी मौजूदा सरकार के खिलाफ एक आंदोलन चल रहा है।

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