किसी भी मेडिकल स्टोर पर चले जाइए, कई ऐसे लोग दिख जाएंगे, जिनके पास डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन नहीं होता है, वो बस दवाई का नाम बताते हैं और मेडिकल स्टोर वाला उन्हें दवाई दे देता है।
सर दर्द हुआ, बदन दर्द, दांत का दर्द या किसी भी तरह का दर्द। सबका एक ही इलाज। पेन किलर Pain killer। तमाम कंपनियों की दर्द निवारक दवाई उपलब्ध हैं, और यह बगैर डॉक्टर की पर्ची के आसानी मिल जाएगी।
लेकिन ऐसी कई रिसर्च और रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यही पेन किलर, जिसकी मदद से लोग दर्द से छुटकारा पाना चाहते हैं, अब किलिंग का काम कर रही है। पेन किलर के अंधाधुंध इस्तेमाल से लोगों की मौतों का आंकड़ा आपको चौंका देगा। मौतों की संख्या उतनी ही है, जितनी किसी महामारी में होती है।
बात करते हैं अमेरिका की। पिछले दो साल में कोराना में लॉकडाउन के दौरान अमेरिकियों ने पेन किलर का बेइंतहा इस्तेमाल किया। वजह थी कोरोना से बचने की कोशिश।
सीडीसी (CDC) रोग नियंत्रण व बचाव केंद्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2020 से अप्रैल 2021 के दौरान पेन किलर के ओवरडोज के कारण 1 लाख से ज्यादा अमेरिकियों की मौत हो गई।
सीडीसी (CDC) एक अमेरिकी एजेंसी है। उसने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि अध्ययन में सामने आया कि पिछले साल की तुलना में ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों में 30 प्रतिशत की बढोतरी हुई है। 5 साल में ये आंकड़ा दोगुना हो चुका है। ड्रग ओवरडोज का ये आंकड़ा अमेरिका में कोरोना काल में ली गई दवाइयों के इस्तेमाल के बाद साइड इफेक्ट के रूप में सामने आया है।
इस दवा से सबसे ज्यादा मौतें
सीडीसी (CDC) की रिर्पोट के मुताबिक 1 लाख में से सबसे ज्यादा 64 हजार मौतें सिन्थेटिक पेनकिलर फेन्टेनिल से हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक फेन्टेनिल मॉरफिन से करीब 100 गुना ज्यादा असरकारक होती है।
रोजाना 40 लोगों की मौत
(CDC) के मुताबिक अमेरिका में पेनकिलर के ओवरडोज से हर दिन करीब 40 लोगों की मौत हो जाती है। वहीं, 2013 में 19 लाख लोग ओवरडोज के शिकार हुए थे और वे इन नशीली दवाओं के आदि हो गए थे।
63 लाख लोगों पर रिसर्च
पिछले साल की गई एक रिसर्च में सामने आया कि पेन किलर के इस्तेमाल से हार्ट अटैक और स्ट्रोक से मौत का खतरा 50 फीसदी तक बढ़ चुका है।
डेनमार्क स्थित आरहुस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने करीब 63 लाख लोगों पर रिसर्च की थी। इस उन पर पैरासिटामॉल, आइबुब्रूफेन और डाइक्लोफेनैक सहित अन्य दर्द निवारक दवाओं के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। इससे पता चला कि स्टेरॉयड रहित ये दवाएं शरीर से पानी और सोडियम निकालने की किडनी की रफ्तार को धीमा कर देती हैं। इससे खून का प्रवाह तेज हो जाता है। इसकी वजह से अंगों को खून पहुंचाने में बहुत ज्यादा दबाव बढ़ जाता है, जिससे धमनियों के फटने और व्यक्ति को हार्ट अटैक व स्ट्रोक का शिकार होने का खतरा रहता है।
मारक मार्फिन का ओवरडोज
साल 2019 में पंजाब सरकार की फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में खुलासे ने चौंका दिया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 23 महीनों के भीतर लैब में 134 लोगों के विसरा की जांच की गई, जिनमें से 78 मामले नशे के ओवरडोज के सामने आए। दरअसल, मार्फिन भी दर्द निवारक के तौर पर काम आती है। इनमें से अधिकतर मौतें मॉर्फिन के ओवरडोज से हुई हैं। लैब के अधिकारियों के मुताबिक इस रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया कि राज्य में अफीम से बनाई जाने वाली दर्द निवारक दवा मॉर्फिन का अब नशे के तौर पर ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है।
यह भी एक कारण
दरसअल पंजाब में मॉर्फिन पाउडर की शक्ल में काफी महंगी 4000-4500 रुपये प्रति ग्राम बिकती है। वहीं इंजेक्शन के रूप में यह महज 500-700 रुपये में उपलब्ध है। नशे के आदी लोगों को इंजेक्शन खरीदना सस्ता लगता है। लेकिन वे मॉर्फिन के इंजेक्शन और पाउडर की मात्रा में फर्क नहीं समझ पाते और इसके ओवरडोज से मर जाते हैं।
लैब की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में नशे के ओवरडोज से मरने वालों में 88 फीसदी मॉर्फिन का शिकार हुए थे। इसके अलावा 14 फीसदी विसरा में कीटनाशकों की मात्रा भी पाई गई है। लैब में अब भी 4000 से ज्यादा सैंपल जांच के लिए पड़े हैं।
अमृतसर मौत का अड्डा
23 माह में नशे के ओवरडोज से मौतों के मामले में अमृतसर पहले नंबर पर रहा। यहां 15 मौतें हुईं। वहीं होशियारपुर में 11, लुधियाना में 8, फिरोजपुर व जालंधर में 5-5 मौतें दर्ज की गईं। बठिंडा, गुरदासपुर, पटियाला भी इससे अछूते नहीं रहे। मृतकों में बड़ी संख्या 18-25 साल के युवाओं की है।
क्या है पैन किलर का इतिहास?
दरअसल 1980 के दशक में ओपियॉइड दवाइयां केवल उन ही मरीजों को दी जाती थीं जो किसी बड़ी सर्जरी या कैंसर का इलाज करा रहे हों। 1990 के दशक से इन दवाइयों को शरीर में दर्द की आम शिकायतों पर भी लिखा जाने लगा। 2000 से लेकर तो मरीजों को ऐसी दवाएं लिखे जाने की दर 3 गुनी हो गई और इसी के साथ इसके कारण मरने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ गई। साल 2014 में केवल अमेरिका में ही 28,400 लोग ओपियेट्स के कारण मारे गए थे। इनमें से कई लोग डॉक्टर की लिखी पेनकिलर दवाई ले रहे थे तो कई बिल्कुल इसी रासायनिक संरचना वाले ड्रग्स हेरोइन का सेवन करते थे।
एक पर्चा, मरीज अनेक
भारत में भी कमोबेश यही स्थिति है, लोगों में पेन किलर खाने की लत सी है। दुखद यह है कि अब ऑनलाइन और सोशल मीडिया पर भी फर्जी प्रिस्क्रिप्शन से दवाओं की ब्रिकी होती है। पिछले दिनों डीईए ने 800 लोगों को गिरफ्तार कर 18 लाख फेन्टेनिल जब्त की थी।
सोशल मीडिया एप स्नेपचैट पर भी फेन्टेनिल की सप्लाई के कई मामले सामने आए हैं। कोरोना काल में तो भारत में एक ही डॉक्टर के पर्चे को व्हाटसएप्प पर प्रचारित करते थे, और उससे कई लोग दवाइयां खरीद लेते थे।