नई दिल्ली। क्यों हर दिन बढ़ रहे हैं पेट्रोल और डीजल के दाम, राजनीतिक रूप से संवेदनशील और आम आदमी से जुड़े इस मसले की गंभीरता को देखते हुए भी सरकार इस मामले में हस्तक्षेप को लेकर पसोपेश में क्यों है और निकट भविष्य में इससे राहत की क्या कोई उम्मीद है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो आज पूरे देश के लोगों को परेशान कर रहे हैं।
सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते पेट्रोल के दाम दिल्ली में 78 रुपए प्रति लीटर से ऊपर और डीजल 69 रुपए से अधिक हैं। बढ़ती महंगाई की आंच लोगों को झुलसाने लगी है। ईंधन के दामों में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में पेश हैं सार्वजनिक क्षेत्र की ऑइल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) के पूर्व चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) आरएस शर्मा से सवाल :
तेल कंपनियां किस आधार पर कीमत का निर्धारण करती हैं? हाल में कच्चे तेल के दाम 4, 5 डॉलर घटने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम में मात्र 1 पैसा, 5 पैसा की कटौती की गई?
उत्तर- पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम के आधार पर तय होती हैं। जहां तक इसमें कमी का सवाल है, यह 1-2 दिन के लिए ही हुई है। कच्चे तेल के दाम में फिर तेजी देखी जा रही है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक कंपनियों पर राजनीतिक प्रभाव रहता है। वैसे भी कंपनियों पर जिसका स्वामित्व होता है, उसके हिसाब से निर्णय होते हैं। यह बात हर जगह लागू है। प्रबंधन को अपने हित में जो उपयुक्त लगता है, कंपनियां वही काम करती हैं। दूसरा, हम अपनी कुल तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत आयात करते हैं और इस पर कर लगाना और उसकी वसूली सबसे ज्यादा आसान है। यह सरकार के राजस्व का बढ़िया स्रोत है।
पेट्रोल और डीजल के दाम में हाल में आई तेजी के क्या कारण हैं?
उत्तर- इसका कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में वृद्धि है। यह वृद्धि मांग और आपूर्ति में अंतर तथा धारणा से प्रभावित होती है। अमेरिका के ईरान के साथ परमाणु समझौते से हटने तथा फिर से पाबंदी लगाने और वेनेजुएला में संकट से आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है और इसीलिए घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ीं। इसके अलावा तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के सदस्य देश अपने हितों के आधार पर कच्चे तेल का दाम 80 डॉलर से अधिक रखना चाहते हैं और इसी के आधार पर आपूर्ति निर्धारित कर रहे हैं।
पेट्रोल-डीजल के दाम में वृद्धि निरंतर एक मसला बना हुआ है। इसका दीर्घकालीन हल क्या है? क्या जीएसटी के दायरे में लाने से राहत मिलेगी?
उत्तर- इस बारे में विजय केलकर की अध्यक्षता वाली समिति ने उत्पादन बढ़ाने एवं विभिन्न स्तर पर सुधारों को लेकर कई सिफारिशें की हैं। उन सिफारिशों को लागू करने की जरूरत है। दूसरी बात, जब आपने ईंधन के दाम में नियंत्रणमुक्त करने का निर्णय किया तो इस फैसले का सम्मान होना चाहिए। जब कच्चे तेल के दाम घट रहे थे, फिर आपने उत्पाद शुल्क क्यों बढ़ाए? तेल के दाम कम हो रहे थे तो इसका लाभ ग्राहकों को देना चाहिए था।
वर्ष 2014 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9 रुपए के करीब था जिसे बढ़ाकर 19 रुपए से अधिक कर दिया गया (पेट्रोल पर जून 2014 में उत्पाद शुल्क 9.48 रुपए तथा अक्टूबर 2017 से 19.48 रुपए, डीजल पर 3.56 रुपए तथा अक्टूबर 2017 से 15.33 रुपए) जबकि उस समय तेल के दाम घट रहे थे। अगर आपने उस समय वह लाभ दिया होता, तो अभी इतना हो-हल्ला नहीं मचता। पर कर राजस्व बढ़ाने तथा राजकोषीय स्थिति में सुधार के लिए ऐसा नहीं किया गया।
सरकार को उत्पाद शुल्क में कटौती करनी चाहिए। इससे मूल्यवर्द्धित कर (वैट) भी कम होगा और दाम कम होंगे तथा ग्राहकों का राहत मिलेगी। दूसरा कोई उपाय नहीं है, क्योंकि फिलहाल अंतररष्ट्रीय बाजार में दाम में नरमी के कोई संकेत नहीं दिखते। जहां तक जीएसटी (माल एवं सेवाकर) का सवाल है, फिलहाल इसके तहत अधिकतम कर 28 प्रतिशत है जबकि पेट्रोल-डीजल पर कर 100 प्रतिशत (उत्पाद शुल्क और स्थानीय कर या वैट मिलाकर) से भी अधिक है। उनके लिए (केंद्र एवं राज्य सरकार) पेट्रोलियम उत्पादों को फिलहाल जीएसटी के दायरे में लाना मुश्कल है, क्योंकि इससे उनका राजस्व प्रभावित होगा।
आईओसी, ऑइल इंडिया जैसी कंपनियों का मुनाफा काफी बढ़ा है। क्या तेल कंपनियों को कुछ सबसिडी वहन नहीं करनी चाहिए?
उत्तर- ये कंपनियां काफी बड़ी हैं। इनका जितना कारोबार है, उसमें 20,000 करोड़ रुपए का सालाना मुनाफा कोई ज्यादा नहीं है। फिर इन्हें नई परियोजनाओं और विदेशों में भी निवेश करना होता है, जो जरूरी है। उसके लिए पूंजी चाहिए। ये कंपनियां बेहतर काम कर रही हैं। इन पर आप कितना भार डालेंगे? (भाषा)