नई दिल्ली। लगातार 2 सप्ताह तक 100 डॉलर बैरल से ऊपर रहने के बाद वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल के दाम मंगलवार को नरम होकर 99.84 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए। इससे खुदरा तेल कंपनियों पर मार्जिन दबाव कम हुआ है। कंपनियों ने कच्चे माल की लागत बढ़ने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं।
ब्रेंट क्रूड मंगलवार को 7 प्रतिशत नीचे आ गया। इससे पहले 28 फरवरी को यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया था और 7 मार्च को 14 साल के उच्चस्तर 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। बाजार पर चीन में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों का असर हुआ है। चीन कच्चे तेल का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है, ऐसे में मांग पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसके अलावा यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध विराम को लेकर बातचीत में प्रगति के भी संकेत हैं।
भारत के लिए कच्चे तेल के दाम में कमी अच्छी खबर है, क्योंकि इससे दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक देश का आयात बिल कम होगा। उद्योग सूत्रों के अनुसार इससे सार्वजनिक क्षेत्र की खुदरा तेल कंपनियों पर दबाव भी कम होगा।
सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) ने रिकॉर्ड 131 दिनों तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है। कच्चे माल की लागत में 60 प्रतिशत से अधिक के उछाल के बावजूद कीमतें जस-की-तस हैं।
ऐसी आशंका थी कि कंपनियां उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के पिछले सप्ताह पूरा होने के बाद ईंधन के दाम बढ़ा सकती हैं। लेकिन उन्होंने दाम को बरकरार रखा और विपक्षी दलों को सोमवार से शुरू संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में सरकार को घेरने का मौका नहीं दिया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कच्चे तेल के दाम में कमी निश्चित रूप से पेट्रोलियम कंपनियों के लिए अच्छा संकेत है। उन्हें विपणन मार्जिन पर विचार किए बना पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर 12-13 रुपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम जब 81 डॉलर प्रति बैरल था तब से यानी चार नवंबर से कंपनियों ने दाम नहीं बढ़ाए हैं।