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पायलट बाबा का निधन, आश्रम में दी भू-समाधि

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हिमा अग्रवाल

हरिद्वार , शुक्रवार, 23 अगस्त 2024 (00:31 IST)
Pilot Baba passed away : जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलट बाबा को आज उनके आश्रम में भू समाधि दे दी गई है। पायलट बाबा ने बीती 20 अगस्त को मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल में अंतिम सांस ली। जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को हरिद्वार आश्रम में दर्शन के लिए रखा गया। पायलट बाबा के अंतिम दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे अखाड़े से जुड़े पदाधिकारी, संत समाज और स्थानीय लोगों ने श्रद्धांजलि दी है।

पायलट बाबा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर आध्यात्मिक गुरु भी थे। सामाजिक और पारिवारिक रूप से संन्यास लेने से पहले वे भारतीय वायुसेना में बतौर विंग कमांडर भी रहे। उन्होंने साल 1962, 1965, 1971 के युद्ध में बतौर विंग कमांडर हिस्सा लिया था।

सैनिक से संत बने इस आध्यात्मिक गुरु की देश-विदेश में अपनी अनोखी साख रही है। पायलट बाबा के अध्यात्म और धार्मिक ज्ञान के चलते उनके बड़े संख्या में भक्त थे। भक्तों और अनुयायियों ने पायलट बाबा के देश से लेकर विदेश तक में कई आश्रम बना दिए हैं।

पायलट बाबा का जन्म बिहार के रोहतास जिले के नोखा बिशनपुर में 15 जुलाई 1938 को हुआ था। बाबा का मूल नाम कपिल सिंह था। गांव में शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद उनका चयन इंडियन एयरफोर्स में हुआ। 1957 में भारतीय वायुसेना का कमीशन प्राप्त करने के बाद लड़ाकू विमान उड़ाना सीखा और वर्ष 1962, 1965, 1971 के युद्ध में विंग कमांडर की भूमिका निभाई।

विंग कंमाडर से पायलट बाबा बनने का भी रोचक सफर है। इस विंग कमांडर ने महज 33 साल की उम्र में एयरफोर्स से रिटायरमेंट ले लिया और संन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे। बताया जाता है कि साल 1962 में जब विंग कमांडर कपिल सिंह उर्फ पायलट बाबा विमान उड़ा रहे थे तो विमान में तकनीकी गड़बड़ी हो गई, खराबी के चलते विमान की लैंडिंग नहीं कर पा रहे थे, तब पायलट बाबा ने अपने गुरु हरि बाबा का स्मरण किया।

हरि बाबा को याद करते ही उन्हें लगा कि उनके गुरु कॉकपिट में बैठकर विमान को सुरक्षित लैंडिंग करवा रहे हैं। तब से उनका मन अध्यात्म से अधिक जुड़ गया। पायलट बाबा ने रिटायरमेंट लेने के बाद अपनी लग्जरी जिंदगी और सुविधाओं को त्याग कर संत समाज की राह को चुना।

अध्यात्मिक जिंदगी जीते हुए वे सन् 1974 में जूना अखाड़ा सेजुड़े, अखाड़े में उनकी धार्मिक शिक्षा-दीक्षा शुरू होने के साथ ही संत समाज में समागम हो गया। उन्हें सन् 1998 में महामंडलेश्वर पद मिला, वर्ष 2010 में उज्जैन के प्राचीन जूना अखाड़ा शिवगिरि आश्रम नीलकंठ मंदिर का पीठाधीश्वर बनाया गया।

जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पद पर रहते हुए पायलट बाबा ने 86 वर्ष की आयु में प्राण छोड़ दिए। वे काफी समय से गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे। बाबा के निधन का समाचार मिलते ही देश-विदेश में उनके भक्त शोक में डूब गए। हरिद्वार, उत्तरकाशी, नैनीताल और बिहार के सासाराम सहित नेपाल, जापान, सोवियत संघ सहित कई देशों में बड़ी संख्या में उनके अनुयायी आश्रम में रहते हैं।

पायलट बाबा ने निधन से पहले अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था। उनके पास अकूत संपत्ति है। पायलट बाबा की मौत के बाद प्रश्‍न उठता है कि इस संपत्ति का वारिस कौन होगा, उनकी विरासत कौन संभालेगा? हालांकि जूना अखाड़े के संरक्षक हरिगिरि का कहना है कि जूना अखाड़े के जिस संत के पास दो तिहाई मत होगा, वह ही बाबा का उत्तराधिकारी बनाया जाएगा।

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