नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल प्रबंधन में राज्यों की भूमिका की सरहाना करते हुए आज कहा कि जल संकट देश के समक्ष बड़ी चुनौती बन गया है और जन भागीदारी को आधार बनाकर ही इसका मुकाबला किया जा सकता है।
मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने कार्यक्रम 'मन की बात' के 20वें संस्करण में जल संचय पर विशेष जोर दिया और कहा कि देश के 11 राज्य गंभीर जल संकट की चपेट में हैं।
इन राज्यों ने अपने यहां इस संकट के समाधान के लिए अपने स्तर पर बेहतर प्रयास किए हैं और जल प्रबंधन का अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन इस संकट का समाधान जल की बर्बादी रोककर इसमें जन भागीदारी को सुनिश्चित करना है।
उन्होंने पानी बचाने में योगदान देने के लिए लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि पानी का संरक्षण, संवर्द्धन और जल-संचय करें, जल-सिंचन को भी आधुनिक बनाएं। इस बात को मैं आज बड़े आग्रह से कह रहा हूं। आने वाले चार महीनों के दौरान बूंद-बूंद पानी के लिए 'जल बचाओ अभियान' चलाना है और ये सिर्फ सरकारों का नहीं, राजनेताओं का नहीं बल्कि जन-सामान्य का भी काम है। मीडिया ने भी पिछले दिनों पानी की मुसीबत का विस्तार से वृत्तांत दिया है। मैं आशा करता हूँ कि पानी बचाने की दिशा में मीडिया भी लोगों का मार्गदर्शन करेगा।
मोदी ने कहा कि इस बार मानसून शायद एक सप्ताह विलम्ब से आएगा और देश का ज्यादा हिस्सा भीषण गर्मी की चपेट में है। ऐसे में चिंता बढाना स्वाभाविक है। जंगल कम हो गए हैं और प्रकृति का विनाश करके मनुष्य ने स्वयं को विनाश के मार्ग पर धकेल दिया है।
ऐसे में अब हमारे समक्ष जंगलों को बचाने का भी संकट पैदा हो गया है। पिछले दिनों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि हिमालयी राज्यों में जंगल आग की भेंट चढ़ गए। पानी के साथ ही जंगलों को बचाने की भी जिम्मेदारी समाज पर आ गई है।
उन्होंने कहा कि पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। विश्व में पर्यावरण को लेकर चर्चा हो रही है और इस बार संयुक्त राष्ट्र में विश्व पर्यावरण दिवस पर वन्य जीवों के अवैध व्यापार पर सख्ती करने को लेकर व्यापक चर्चा होनी है। दुनिया के देश तय करेंगे कि वन्य जीवों की तस्करी को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके अलावा पेड़ पौधों, पानी तथा जंगल बचाने को लेकर भी विश्व मंच पर चर्चा होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के 11 राज्यों में सूखे की स्थिति गंभीर है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा ओडिशा शामिल हैं। इन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पिछले दिनों सूखे की स्थिति पर उनसे अलग-अलग चर्चा की।
उनका कहना था कि परंपरा के अनुसार वह चाहते तो सभी सूखा प्रभावित राज्यों की एक बैठक बुला सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा करने की बजाए हर राज्य के प्रमुख के साथ दो से तीन घंटे तक सूखे पर चर्चा की। (वार्ता)