इंदौर। कटा हुआ हरा धनिया, अनार के दाने, हरी मिर्च और अन्य सामग्री से सजी पोहे की कड़ाही को देखकर किसके मुंह में पानी नहीं आता... ऊपर से प्याज, नींबू, जीरावन, सेंव-नुक्ती और झन्नाट ऊसल की मार हो जाए तो फिर कहने ही क्या।
हालांकि महंगाई के चलते फिलहाल प्याज ने पोहे की प्लेट से दूरी बनाई हुई है या फिर नाम के लिए ही मिल पाता है। ...और हां, पोहे के साथ जलेबी भी हो तो सोने पे सुहागा। जलेबी न भी मिले तो इंदौरी कट चाय से भी काम चला लेते हैं।
लेकिन इंदौरी भियाओं का पोहा (पोए) अब राजनीति का शिकार हो गया है। स्वाद का खजाना अब सियासत का खोह बन गया है। दरअसल, यह सब हुआ भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के इस बयान के बाद कि उन्होंने अवैध बांग्लादेशी को उसकी पोहा खाने की स्टाइल से पहचान लिया।
जैसे ही #Poha ट्रेंड हुआ, लोगों ने जमकर अपनी भड़ास निकाली। अतुल चौरसिया नामक ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि मेरी जानकारी में पोहा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय नाश्ता है। विजयवर्गीय इंदौर से हैं और वहां पोहा खाना बहुत ही सामान्य है। उधर तो मैंने किसी को कहते हुए भी सुना था कि शक्ल पोहे जैसी है तो बात भी पोहे जैसी ही करेंगे।
अभिषेक सिंघवी ने लिखा- सरदार हमें माफ कर दीजिए, हमने आपका #Poha खाया है। इमरान शेख ने लिखा- मैं बांग्लादेशी नहीं हूं, लेकिन मुझे पोहे बहुत पसंद हैं। कुछ लोगों ने कैलाश विजयवर्गीय के कमेंट का बचाव भी किया।
कमल कुमार नामक व्यक्ति ने बीबीसी का कार्टून ट्वीट करते हुए लिखा कि कोई पत्थरबाजों की पहचान कपड़ों से कर लेता है और ये बुद्धिमान पोहे से व्यक्ति की राष्ट्रीयता की पहचान कर लेते हैं। ग्रेट...एक अन्य व्यक्ति ने सवाल उठाया कि कैलाश विजयवर्गीय आप पोहा खाते हैं, क्या आप बांग्लादेशी हैं?
बिजोय डे ने लिखा- ध्यान से देखिए, बांग्लादेशी पोहे के साथ प्याज भी खा रहा था। इसका मतलब यह है कि वे आर्थिक मंदी का भी आरोप लगा सकते हैं। एक अन्य व्यक्ति ने मोदी का फोटो ट्वीट करते हुए लिखा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिना खिचड़ी और पोहे के जिंदा नहीं रह सकते।
खैर! राजनीतिक विवाद अपनी जगह है, लेकिन हमें तो इस बात के लिए खुश हो जाना चाहिए कि हमारा 'प्रिय पोहा' सोशल मीडिया की गलियों और नुक्कड़ पर खुशबू फैला रहा है।